Republic Day - 2019

02 September 2018

वर्षा ऋतु

वर्षा ऋतु

1. भूमिका:

मनुष्य की आयु  की तरहही प्रकृति प्रछ।णस) भीबचपन, जवानी बुढ़ापे गुजरती । काल प्रकृति समान होता है । भारत छ: ऋओं वाला देश है- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत । ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा का आगमन होता है । सूखती फ़शलों , सुखी नदियों, सूखते  पेड़-पौधों सबको नया जीवन देने आती है वर्षा ऋतु ।

2. वर्णन:

वर्षा ऋतु के महीने होते हैं आषाढ़, सावन और भादो अर्थात जुलाई, अगस्त, सितम्बर । वर्षा ऋतु के आरम्भ होते ही मेढक, मोर पपीहा आदि जन्तु आनंदित होकर बोलने लगते हैं । गर्मी सै झुलसते पेड़ पौधों को नया जीवन मिल जाता है । पत्ते फिर से स्वस्थ और हरे-भरे दिखाई पड़ने लगते हैं ।
नये-नये पौधों और छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं का जन्म होने लगता है, नई कोंपलें  फूटने लगती हैं । भीषण गरमी से सूखी नदियाँ और ताल-तलैये जल से लबालब भर जाते हैं । पहाड़ों का उदास रंग फिर खिल उठता है ।
वर्षाकाल आने के साथ ही जब वर्षा की पहली फुहार धरती पर पड़ती है, तभी से किसान अपने खेतों में नई फसल बोने की तैयारी करने लगते हैं । गाय-बैलों को हरी-हरी घास मिलने पर वे भी प्रसन्न हो उठतेहैं । बैल हल में जुतकर खुशी-खुशी खेतों को जीतने । को तैयार हो जाते हैं । बालिकाएँ  पेड़ों पर झूले डालकर गीत गाती हुई झूला-झूलने लगती हैं ।

3. महत्त्व:

वर्षाकाल आने पर कुछ कठिनाइयाँ भी बढ़ जाती हैं । चारों तरफ नदी-नाले जल से भर जाने के कारण तथा रास्तों पर जल जमा हो जाने से आवागमन  में तो असुविधा होती ही है, चारों ओर गंदगी भी बढ़ जाती है जिससे नाना प्रकार की बीमारियाँ  फैलने का खतरा भी हो जाता है । फिर भी वर्षा का अपना महत्व है । यदि वर्षाकाल न आए तो धरती पर शायद अनाज और फल-फूल पैदा होना भी बन्द हो जाए और अनेक जीव-जन्तु प्यास से मर जाएँ ।

4. उपसंहार:

वर्षाकाल एक आनन्ददायक ऋतु है । अनेक ग्र थों में वर्षाकाल का बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है । यहाँ तक कि संत कवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में तथा महाकवि कालिदास ने मेघदूत नामक ग्रंथ में वर्षा का सुन्दर वर्णन किया है । वास्तव में वर्षा ऋतु सभी ऋतुओं की रानी  है ।
http://www.essaysinhindi.com