दीपावली
पर निबन्ध
1. भूमिका:
अंधकार अज्ञानता का प्रतीक है तथा प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है । मनुष्य की इच्छा सदैव अज्ञानता के अंधकार से निकलकर ज्ञान के
प्रकाश में जाने की रहती है । मनुष्य की इसी इच्छा का प्रतीक है प्रकाश का पर्व दीपावली । दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति । दीपों की यह रोशनी अमावस्या की रात्रि के घने अंधकार से
मुक्त करने का प्रयत्न करती है ।
2. इतिहास:
दीपावली मनाना
वास्तव में कब आरम्भ हुआ, यह कहना कठिन है । ऐसा माना जाता है कि
चौदह वर्षों के वनवास बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आए
तो अयोध्या के लोगों ने उनके स्वागत में उस रात दीपावली मनायी थी ।
कुछ जैन मतावलंबी
यह मानते हैं कि इसी दिन चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था । आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द
सरस्वती का निर्वाण भी इसी दिन माना
जाता है ।
अनेक लोगों में यह
विश्वास भी प्रचलित है कि आदि मानव ने इसी दिन आग जलाना सीखा था । अत: सम्पूर्ण भारत में दीपावली मनाने
के अनेक कारण प्रचलित हैं । दीपावली सम्पूर्ण भारत में लगभग एक ही तरीके से दीपक जलाकर, पटाखे फोड़कर और ईश्वर की पूजा-आराधना के साथ मनायी जाती है ।
3. आयोजन:
दीपावली के दिन सार्वजनिक छुट्टी रहती है और सब
लोग खुशी के अनुभव से भरे रहते हैं । दीपावली के कई दिनों पहले से ही घर-द्वार, गिन, गली-मुहल्लों की सफाई शुरू हो जाती है । पुरानी चीजों की
जगह नई चीजें लाना तथा चारों ओर रंग-रोगन से घरों-दुकानों
को सजाना इस पर्व में आवश्यक माना जाता है ।
रात को तेल-घी आदि
के दीपक तथा मोमबत्तियों या बिजली के लैंपों की कतारों से सजावट होती है
। तरह-तरह की मिठाइयों को खाना-खिलाना तथा रात्रि को गणेश एवं लक्ष्मी का पूजन इस पर्व की विशेषता है ।
4. उपसंहार:
दीपावली प्रकाश का त्योहार है । अंधकार से प्रकाश में जाने
की इच्छा प्रत्येक प्राणी का धर्म है । इसी इच्छा का प्रतीक है दीपावली । यह राष्ट्रीय एकता तथा भाईचारा बढ़ाने वाला पर्व भी है । आज इस पर्व की कुछ बुराइयों को हटाकर इसे और आनन्ददायक बनाने की
आवश्यकता है ।
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