Republic Day - 2019

15 September 2018

अनमोल रतन



सुंदर मनुषा देह यह, पायौ रतन अमोल।
कौड़ी सटै न खोइए, मानि हमारौ बोल।।

यह मनुष्य की देह एक अमूल्य रत्न है। तुम्हें तो भरोसा न आएगाकैसे भरोसा आए? तुमने तो नरक के अतिरिक्त इस जीवन में कुछ जाना नहीं है। हां, कोई कहे कंकड़-पत्थर है, दो कौड़ी की है, तो समझ में आ जाए।. . . अमोलक रत्न! तुम कैसे मानोगे? तुमने तो अपने भीतर कुछ भी देखा नहीं है, जिसका कुछ मूल्य हो। तुम तो अपने को दो कौड़ी में इसीलिए बेचने को तैयार हो।
एक कुम्हार मिट्टी खोदकर अपने गधे पर लादकर मटके बनाने के लिए ले जा रहा था। एक हीरा हाथ लग गया। प्यारा हीरा! बड़ा हीरा! मगर कुम्हार को तो हीरे की पहचान नहीं। कुम्हार का तो संबंध मिट्टी से है। माटी उसका नाता, माटी उसकी भाषा। पहले तो उसने फेंक ही दिया उस हीरे को। फिर थोड़ा चमकदार दिखता था, सूरज की रोशनी में चमकता था, सोचा कि चलो अपने प्यारे गधे के गले में लटका देंगे। और तो उसका किसी से नाता-रिश्ता भी न था। कुम्हार का और नाता-रिश्ता हो भी किससे! गधा ही उसका सब कुछ था। तो उसने गधे के गले में लटका दिया। बड़ा खुश हुआ। चला मिट्टी लादकर।
राह पर एक जौहरी ने यह देखा। उसकी तो आंखें फटी की फटी रह गयीं। इतना बड़ा हीरा उसने देखा ही नहीं था। और गधे के गले में बंधा! बात तो साफ हो गयी कि इस कुम्हार को कुछ भी पता नहीं है। वह जौहरी पास आया और कहा, इस पत्थर का क्या लोगे? कुम्हार ने तो सोचा ही नहीं था कि इसका कोई दाम देनेवाला मिलेगा। अब उसने कहा कि अब आपकी मर्जी ही हो गयी और आपको पत्थर रुच ही गया, एक रुपया दे दें।
एक रुपया भी कुम्हार ने बहुत हिम्मत करके मांगा। एक रुपया! दिनभर की मेहनत के बाद मिलता है। मगर इस आदमी की आंखों में ऐसी रौनक मालूम पड़ रही थी और जीभ में ऐसा स्वाद उठता दिख रहा था, लार टपकी पड़ रही थी, कि उसने सोचा कि देगा एक रुपया, इसको पत्थर जंच गया है।
लेकिन जौहरी ने कहा : एक रुपया? पत्थर का एक रुपया? चार आने में देना हो तो दे दे।
लोभ की कोई सीमा नहीं है। लाखों का हीरा था, एक रुपये में भी लेने में लोभ पकड़ा। सोचाचार आने में देगा यह, चार आने में भी इसको लगेगा कि बहुत कीमत मिल रही है।
कुम्हार ने कहा : चार आने! चार आने में तो नहीं दूंगा। इससे तो गधे के गले में ही अच्छा। और बच्चे घर में खेलेंगे। अपना रस्ता लो!
आठ आना ले लोजौहरी ने कहा! फिर सोचकर दस-पांच कदम चला गया जौहरी, कि इसको बुद्धि आ ही जाएगी, आठ आने कौन इसको देने वाला है! आधे दिन की मेहनत। थोड़ी दूर जाकर जब कुम्हार नहीं लौटा तो जौहरी वापिस आया, लेकिन तब तक किसी दूसरे आदमी ने दो रुपये में खरीद लिया। दूसरे जौहरी ने खरीद लिया। बिक ही चुका था। छाती पीट ली पहले जौहरी ने। और कुम्हार से कहाः अरे मूरख! महामूरख! लाखों की चीज दो रुपये में बेच दी?
उस कुम्हार ने कहाः मैं तो मूरख हूं, सो जाहिर है। लेकिन तुम तो लाखों की चीज रुपये में भी न खरीद सके! मैं तो मूरख हूं, मुझे पता नहीं है; तुम्हें तो पता था? तुम्हारी मूर्खता मुझसे बहुत ज्यादा घनी है।
यहां तुम देखो, लोग जिंदगी को ऐसे गंवा रहे हैं कि जैसे उन्हें सूझता ही नहीं क्या करें! कोई ताश खेल रहा है, उससे पूछो : क्या कर रहे हो? वह कहता हैः समय काट रहे हैं। समय काटने का मतलब तो है, जिंदगी काट रहे हैं। काटे नहीं कट रही है! यह परमात्मा ने बड़ा गुनाह किया, तुम्हें जिंदगी दी। तुम काट रहे हो। कोई रोटरी-क्लब में काट रहा है, कोई होटल में काट रहा है, कोई सिनेमा में काट रहा है, कोई कहीं काट रहा है, कोई कहीं काट रहा है. . . काटो। तुम्हें पता नहीं है कि तुम क्या काट रहे हो!

ओशो : ज्‍योति से ज्‍योति जले