कब मन की पुरानी तरकीब है। जब मन को कोई बात टालनी होती है, तो वह कहता है, कल कर लेंगे।
मार्क ट्वेन ने एक संस्मरण लिखा है कि वह एक चर्च में प्रवचन सुनने गया। जब वह प्रवचन सुन रहा था तो बड़ा प्रभावित हुआ। कोई पांच —सात—दस मिनिट ही बीते थे, वह जो चर्च में बोल रहा था धर्मगुरु बड़ा प्रभावशाली था, मार्क ट्वेन ने सोचा कि आज सौ डालर दान कर दूंगा। फिर दस मिनिट और बीते, अब तो उसे सुनने की याद ही नहीं रही, अब वह सौ डालर की सोचने लगा। फिर उसने सोचा कि सौ डालर जरा ज्यादा होते हैं, पचास से ही काम चल जाएगा। फिर और दस मिनिट बीते, फिर वह सोचने लगा, पचास डालर भी, पचास डालर के लायक बात नहीं जंचती, पच्चीस से चल जाएगा। ऐसे सरकता रहा, सरकता रहा। फिर तो एक डालर पर आ गया। जब आखिरी प्रवचन होने के करीब था तो एक डालर पर आ गया।
फिर उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि तब मुझे खयाल आया और तब मैं एकदम निकल भागा चर्च से। क्योंकि मुझे डर लगा कि जब चंदा मांगने वाला व्यक्ति थाली लेकर घूमेगा, तो अब मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मैं थाली में से कुछ लेकर अपनो जेब में न रख लूं। सौ देने चला था! इस डर से जल्दी से चर्च के बाहर निकल आया कि कहीं थाली में से कुछ उठाकर अपनी जेब में न रख लूं।
तुम सोचते हो, कल संन्यास लोगे! कल तक तुम्हारी संसार की आदतें और मजबूत हो जाएंगी। कल तक तुम और अपने बंधनों को पानी से सींच दोगे। चौबीस घंटे और बीत जाएंगे! चौबीस घंटे तुम और पागल रह चुके होओगे। चौबीस घंटे तुमने और जाल फैला लिए होंगे, और वासनाएं, और आकांक्षाएं और उपद्रव बना लिए होंगे। अभी नहीं छूट सकते हो तो कल कैसे छूटोगे? परसों तो और मुश्किल हो जाएगा। बात रोज—रोज मुश्किल होती जाएगी। ऐसे ही बहुत देर हो चुकी है। इसलिए मैं तुमसे सिर्फ इतना ही कहूंगा, जो भी करना हो, उसे क्षण में कर लेना।
एस धम्मो सनंतनो-(ओशो)