होली पर निबन्ध
1. भूमिका:
होली रंगों का त्योहार है । इस त्योहार को देश
के अलग-अलग भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जाता है किन्तु यह चाहे जिस रूप में मनाया जाए वसन्त ऋतु के इस त्योहार का रंग हर जगह एक-सा लगताहै । पेड़ों पर जन्म लेते नये-नयेपत्तों तथा आनन्ददायक हवाओं के बीच रंग और गुलाल से प्रकृति को और रंगीन बनाने तथा खुले मन से नाचने-गाने का पर्व है होली ।
2. इतिहास:
होली का त्योहार
अपने देश की कुछ पौराणिक कहानियों से जुड़ा हुआ है । उनमें से प्रहलाद और
होलिका की कहानी तो हर साल होली में दुहराई जाती है । कहा जाता है कि हिरण्यकश्यपु
नामक राक्षस राजा अपने पुत्र प्रस्ताद को
इसलिए मार डालना चाहता था क्योंकि वह भगवान विष्णु का भक्त था । हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था ।
उसने प्रस्ताद को
मारने के अनेक उपाय किये, लेकिन असफल रहा । एक बार उसने
अपनी बहन होलिका को देवताओं द्वारा दिये गए वस्त्र को पहन कर, प्रस्ताद को गोद में लेकर जलती चिता में बैठने के लिए कहा ।
होलिका ने वैसा ही
किया किन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रस्ताद बच गया और होलिका जलकर मर गई । ऐसा माना जाता है कि तभी से हर वर्ष फाष्टन पूर्णिमा को होलिका
दहन और होली मनाने की प्रथा चली ।
3. आयोजन:
होली में पूजा-पाठ के साथ-साथ तरह-तरह के नये
वस्त्र पहनने तथा नये-नये प्रकार के भोजन करने का रिवाज है । लोग कई दिन पहले से ही होली मनाने की व्यवस्था करने में लग जाते हैं । होली के दिन
होलिका दहन किया जाता है अर्थात् पुराने घास-फूस-झाड़ियाँ टूटी-फूटी चीजें आदि जलाई जाती हैं और लोग नाचते-गाते हैं । लोग दिन निकलते ही
तरह-तरह के वस्त्र पहन कर एक दूसरे पर रंग डालते और गुलाल लगाते तथा गले मिलते हैं । बच्चे-बूढ़े, युवक, स्त्री-पुरुष सबके मन में नई आशा और नया उमंग लहराने लगता है ।
4. उपसंहार:
होली अपने दुखों को भूलकर भावी जीवन सँवारने, पुरानी दुश्मनी भूलकर नये रिश्ते कायम करने तथा बुराइयों को छोड्कर
अच्छाई की राह पर चलने के निश्चय का त्योहार है ।
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