सुनहरा नेवला
एक दिन नन्हा सा नेवला आया। वह यज्ञ स्थल पर बची भस्म में लोटने लगा। उसका आधा शरीर सुनहरा था। जब उसने अपना काम पूरा कर लिया तब उसने कहा हे राजा युधिष्ठिर! मैंने आपके यज्ञ और दानवीरता की बहुत प्रशंसा सुनी थी पर मुझे अपेक्षा नहीं थी आप इतने साधारण तरीके से यज्ञ करते है। यह सुनकर वहां उपस्थित लोगों ने कहा, ‘क्या कहते हो? ऐसा महान यज्ञ तो आज तक संसार में नहीं हुआ’ तब नेवले ने कहा की वह उन्हें एक महान यज्ञ की कथा सुनाएगा।
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्री के साथ रहता था। भिक्षा मांगने से जो मिलता था, उसी में बड़ी मुश्किल से गुजारा करते थे। एक बार वहां अकाल पड़ गया। और वे भूखों मरने लगे। एक दिन ब्राह्मण को कही से थोड़ा सा चावल मिला । ब्राह्मणी ने उसे पकाकर चार भागों में बांटा। जैसे ही वे भोजन करने बैठे, किसी ने दरवाजा खटखटाया। बाहर एक आदमी खड़ा था, कई दिनों से भूखा होने के कारण वह वही गिर गया | ब्राह्मण ने अपने हिस्से का चावल अतिथि के सामने रख दी, मगर उसे खाने के बाद भी अतिथि की भूख नहीं मिटी। तब ब्राह्मणी ने भी अपना हिस्सा उसे दे दिया। जब इससे भी उसका पेट नहीं भरा तो बेटे और पुत्री ने भी अपने भाग का चावल उसे दे दिया।
मेहमान ने पुरे परिवार को आशीर्वाद देते हुए बोला तुम लोगो ने निःस्वार्थ भाव से मेरी सेवा की, मैंने ऐसा यज्ञ पहने नहीं देखा। भगवान तुम सब का भला करे ।उस अन्न के कुछ कण जमीन पर गिरे पड़े थे। उन कणों पर लोटने से जहां तक मेरे शरीर से उन कणों का स्पर्श हुआ, मेरा शरीर सुनहरा हो गया। नेवले ने कहा मै अपना पूरा शरीर सोने का करना चाहता था, पर भोजन नहीं था। फिर राजा युधिष्ठिर के बारे में सुना। मुझे पुरी आशा थी की मेरी इच्छा पूरी होगी पर आपका यज्ञ उस निर्धन के यज्ञ की तरह निर्दोष नहीं है।
सुनहरा नेवला उसी समय ओझल हो गया।
युधिष्ठिर को उस दिन अहसास हुआ कि भले यज्ञ का बैभव मायने रखता हो, पर जब तक उसमे आत्मा की शुद्धता व पूर्ण समर्पण का भाव नहीं होगा, तब तक वह किसी काम का नहीं है।