संकल्प का बल :
जिंदगी में अनंत संभावनाएं हैं। लेकिन हम वही बन जाते हैं जो हम उन संभावनाओं में से अपने भीतर खींच लेते हैं।
पाम्पेई में विस्फोट हुआ ज्वालामुखी का और पाम्पेई का पूरा नगर जल गया। एक सिपाही जो चौरस्ते पर खड़ा था रात पहरा देने को, सुबह छह बजे उसकी डयूटी बदलेगी, दूसरा सिपाही सुबह छह बजे आकर उसकी जगह खड़ा होगा। सारा पाम्पेई भाग रहा है, रात के दो बजे ज्वालामुखी फूट गया, सारा पाम्पेई कंप रहा है। आग उगल रही है, सारा नगर जल रहा है, सारे गांव के लोग भाग रहे हैं। भागते लोग उस सिपाही को कहते हैं, यहां किसलिए खड़े हो? वह कहता है कि सुबह छह बजे डयूटी बदलने का वक्त है। उसके पहले कैसे हट सकता हूं?
अरे! लोग कहते हैं, पागल हो गए हो? अब डयूटी वगैरह का कोई सवाल नहीं है, मर जाओगे! सुबह छह कभी नहीं बजेंगे, आग लग रही है पूरे गांव में।
उसने कहा, वह तो ठीक है। यही तो मौका है! तब पता चलेगा कि मैं सिपाही हूं या नहीं? छह बजे के पहले कैसे हट सकता हूं? छह बजे तक जिंदा रहा तो डयूटी सम्हाल दूंगा, छह बजे तक जिंदा नहीं रहा तो भगवान जाने। फिर मेरा कोई कसूर नहीं है।
कहते हैं वह सिपाही उसी जगह खड़ा हुआ जल गया! पाम्पेई का पूरा नगर भाग गया। उन भागे लोगों की स्मृति में कोई मूर्ति नहीं है। उस सिपाही की मूर्ति बनानी पड़ी उस जगह। उस नगर में एक ही आदमी था जिसको आदमी कहें, जिसके भीतर कुछ बल था, जिसके भीतर कोई मन था जो खड़ा रह सकता है।
लेकिन हम! कहां पाम्पेई, कोई पड़ोस में सिगरेट जला ले, और आंखें खुल जाएंगी। कोई पड़ोस में जरा सा खांस दे, और आंखें खुल जाएंगी। कैसा यह व्यक्तित्व है? इस व्यक्तित्व को लेकर किस मंदिर में प्रवेश की इच्छा है?
ओशो : तृषा गई एक बूंद से-(प्रवचन-03)