Republic Day - 2019

29 August 2018

सम्राट और तीन बेटे

सूफी कहानी है—

एक सम्राट के तीन बेटे थे और चुनाव करना बहुत मुश्किल था कि किसको अपना राज्य सौंप दे। क्योंकि तीनों ही जुड़वां थे— बराबर उनकी उम्र थी, इस लिए उम्र से कुछ तय न हो सकता था। तीनों प्रतिभा—सम्पन्न थे, शिक्षक भी नहीं कह सकते थे कि कौन अधिक प्रतिभाशाली है। इसलिए उलझन और बढ़ गयी थी। तीनों शक्तिशाली थे। एक से दूसरे बढ़कर थे। तीनों युद्ध के मैदान पर परीक्षित हो चुके थे। और सदा जीतकर लौटे थे। हारना जैसे उन्होंने जाना ही न था। सम्राट किसे अपना उत्तरधिकारी चुने? उसने एक सूफी फकीर से पूछा। उस फकीर ने अपने झोपड़े में से लाकर फूलों के बीजों से भरी हुई एक बोरी दे दी—कहा, यह ले जा, तीनों को बीज बांट दे और तू तीर्थयात्रा को चला जा—और कहना कि जब मैं लौटूं तो बीज मुझे सुरक्षित वापिस चाहिए। और जो इसमें सर्वाधिक सफल होगा, वही मेरे राज्य का उत्तराधिकारी भी होगा।

सम्राट ने बीज तीनों को बांट दिये और तीर्थयात्रा को चला गया।
पहले बेटे ने सोचा, बीजों को सुरक्षित रखना—स्म ही उपाय है कि इन्हें लोहे की तिजोडी में बन्द कर दूं। कोई चूहा न पहुंच जाये, कोई कीड़े न लग जाएं, कोई चुरा न ले। तो उसने एक लोहे की तिजोड़ी में बीज बन्द कर दिये, मजबूत ताले जड़ दिये। चाबियां बहुत सम्भालकर रखीं। रात भी सोता था तो चाबियां अपने हाथ में ही रखता था। अपने तकिये के नीचे दबा रखता था। कहीं जाता था तो चाबियां साथ ले जाता था। क्योंकि सारी जिंदगी, सारा भविष्य उन बीजों के बचने पर था।

दूसरे बेटे ने सोचा कि मैं भी तिजोड़ी में बन्द कर सकता हूं लेकिन कहीं तिजोडी में हवा न लगी, धूप न लगी और बीज सड़ गये! और पिता ने कहा था जैसे दे रहा हूं वैसे ही वापस करना। कही बीज सड गए, तो मैं मारा गया। इसलिए अच्छा हो कि मैं बीज बेच दूं बाजार में। पैसे सुरक्षित रहेंगे। जब पिता आएंगे, फिर बीज खरीद लाऊंगा। बीजों—बीजों में क्या फर्क है? जैसे यह बीज वैसे वह बीज। कोई बीजों पर हस्ताक्षर तो हैं नहीं पिता के! पहचान भी क्या कर सकेगा? सो उसने बीज बेच दिये। पैसे ज्यादा सुरिक्षत रह सकते थे। और जब पिता आएगा तो बीज खरीद लेगा। तीसरे ने जाकर बीज अपने महल के पीछे बी दिये बगीचे में। उसने सोचा, बीज का तो अर्थ ही होता है संभावना। बीज को बचाना अर्थात् सम्भावनाओं को बचाना। और संभावना बचती है एक ही तरह से कि वास्तविक हो जाए। उसने बीज बो दिये।

जब पिता वापिस लौटा तीर्थयात्रा से तो पहले बेटे ने अपनी तिजोडी खोली। लेकिन बीज सड़ गए थे। जिन बीजों से बड़े सुगंधित फूल पैदा हो सकते थे, उस तिजोड़ी से केवल दुर्गन्ध उठी। बाप ने कहा, ये मैंने तुझे बीज दिए न थे। ये मेरे बीज नहीं हैं। जो मैं तुझे दे गया था उनमें दुर्गन्ध नहीं थी, उनमें सुगंध की सम्भावना थी। तूने सम्भावनाओं को विकृत कर दिया। तूने सड़ा डाले बीज। तू हार गया।

दूसरे बेटे से पूछा। दूसरे बेटे ने कहा, जरा रुकिये, मैं बाजार से खरीद लाऊं क्योंकि मैंने बेच दिये— इसलिए कि तिजोड़ी में रखने का यह परिणाम होने वाला है जो मेरे एक बड़े भाई का हुआ। मैं जाता हूं। पिता ने कहा, लेकिन वे बीज वही नहीं होंगे जो मैंने तुझे दिए थे। वे वही नहीं हो सकते क्योंकि उन बीजों पर एक फकीर का आशीर्वाद था। उन बीजों को एक फकीर ने छुआ था। एक बुद्धपुरुष के हाथ उन बीजों पर लगे थे। वे बीज वही नहीं हो सकते। अब तू उन बीजों को कहां से पाएगा, पागल? हीरे बेच दिये, अब तू कंकड़—पत्थर लाएगा। रहने दे, मत जा, मत मेहनत कर! तू हार गया।

तीसरे बेटे से पूछा। उसने कहा, आएं मेरे महल के पीछे। क्योंकि बीज का तो अर्थ ही होता है, जो बढ़े, जो बढ़े नहीं, वह क्या बीज? जो फूटे, अंकुरित हो, वही बीज। तो मैंने उन्हें और तरह नहीं सम्हाला, बो दिया है। आएं! दूर—दूर तक फूलों से ही भर गयी है बगिया। इतने फूल आये हैं कि पक्षियों को अपने घोंसले बनाने के लिए जगह भी नहीं मिल रही है। ऐसे लदे—फदे हैं फूल, मेला भरा है! और राज्य की मुझे चिन्ता नहीं है। मैं तो मस्त हो गया हूं माली होकर। मेरे लिए तो आपने काम दे दिया, अब मैं यही करूंगा तो भी मेरा जीवन धन्य है; बीजों को फूल बनाता रहूंगा— और इससे बड़ी क्या बात हो सकती है!

पिता ने जाकर देखा। दूर—दूर तक जहां तक आंखें जाती थीं, फूल ही फूल थे। सुगन्ध उड़ रही थी। फूल हवाओं में नाच रहे थे। पिता ने कहा, तूने ही केवल मेरे बीज बचाए। हालांकि एक अर्थ में तो तूने बीज .बिलकुल गंवा दिये। कहां हैं बीज? लेकिन एक अर्थ में तूने बचा ही नहीं लिये, तूने बहुत बढ़ा दिए, अनंतगुना कर दिये। अब इन पौधों पर फूल आ गये हैं, जल्दी ही इनमें बीज आएंगे, एक—एक बीज से करोड़—करोड़ बीज हो जाएंगे। तूने ही बचाया। यही बचाने का ढंग है।

मनुष्य एक बीज है। और जो इस बीज को फूलों तक पहुंचा देता है, वही हकदार है कहने का कि मैं मनुष्य हूं। तिजोड़ी में बन्द करने की यह चीज नहीं।
तीसरा बेटा मालिक हो गया साम्राज्य का।
मनुष्य होना दुर्लभ है— क्योंकि सम्भावना भी दुर्लभ है।
'लगन महूरत झूठ सब' प्रवचनमाला से