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20 October 2018

मन का रूपांतरण

मन का रूपांतरण

मैंने सुना है कि एक आदमी पक्षाघात से, पैरालिसिस से परेशान है दस साल से। घर के भीतर बंद पड़ा है; उठ नहीं सकता। लेकिन एक दिन रात, आधी रात अंधेरे में आग लग गई। सारे घर के लोग बाहर निकल गए। वह पैरालिसिस से करीब-करीब मरा हुआ आदमी, वह भी दौड़कर बाहर आ गया। जब वह दौड़कर बाहर आया, तो लोग चकित हुए। वे तो हैरान थे कि अब क्या होगा, उसको निकाला नहीं जा सकता। लेकिन जब उसको लोगों ने दौड़ते देखा, तो मकान की आग तो भूल गए लोग। दस साल से वह आदमी हिला नहीं था, वह दौड़ रहा है!

लोगों ने कहा, यह क्या हो रहा है। चमत्कार, मिरेकल! आप, और दौड़ रहे हैं! उस आदमी ने नीचे झांककर अपने पैर देखे। उसने कहा, मैं दौड़ कैसे सकता हूं! वापस गिर गया। मैं दौड़ ही कैसे सकता हूं? दस साल से…!

लेकिन अब वह कितना ही कहे कि दौड़ नहीं सकता, लेकिन वह खाट से मकान के बाहर आया है। फिर नहीं उठ सका वह आदमी। पर क्या हुआ क्या? इस बीच आ कैसे गया?

वह जो एक कंडीशनिंग थी, एक खयाल था कि मैं उठ नहीं सकता, चल नहीं सकता, आग के सदमे में भूल गया। बस, इतना ही हुआ। एक शॉक। और वह भूल गया पुरानी आदत। दौड़ पड़ा।

सौ में से नब्बे पक्षाघात के बीमार मानसिक आदत से बीमार हैं। सौ में से नब्बे! शरीर में कहीं कोई खराबी नहीं है। सौ में से नब्बे, मैं कह रहा हूं। लेकिन एक आदत है।

और मन के मामले में तो सौ में से सौ दौड़ने के बीमार हैं। पक्षाघात से उलटा। इतने जन्मों से मन को दौड़ा रहे हैं कि अब यह सोच में भी नहीं आता कि मन खड़ा हो सकता है? नहीं हो सकता। कौन कहता है, नहीं हो सकता? यह मन ही कह रहा है।
ओशो –: गीता-दर्शन