एक फकीर एक रात अपने घर में बैठा हुआ था। कोई बारह बजे होंगे, कुछ पत्र लिखता था। और तभी किसी ने द्वार पर धक्का दिया। द्वार अटके थे, जिसने धक्का दिया था वह भीतर आ गया। जो आदमी भीतर आया था, उसकी कल्पना भी न थी कि फकीर जागता होगा। वह उस गांव का सबसे प्रमुख चोर था। लेकिन फकीर जागा हुआ था तो वह घबड़ाया। उसने छुरा बाहर निकाल लिया। समझा कि कोई झगड़े-झंझट की स्थिति बनेगी।
लेकिन फकीर ने कहाः मेरे मित्र, छुरा भीतर रख लो। तुम किसी बुरे आदमी के घर में नहीं आए हो कि छुरे की जरूरत पड़े। छुरा अंदर कर लो, और बैठ जाओ। जरा मैं चिट्ठी पूरी कर लूं, फिर तुमसे बात करूं। वह घबड़ाहट में बैठ गया। फकीर ने अपना पत्र पूरा किया और उससे कहाः कैसे आए इतनी रात? और इतना बड़ा नगर है, इतनी-इतनी बड़ी हवेलियां हैं, इतने-इतने बड़े महल हैं और तुमने मुझ गरीब की कुटिया पर ध्यान दिया, कैसे आए? उस चोर ने कहाः अब आप जब पूछ ही लिए हैं तो बताना जरूरी हो गया है। और शायद आपसे मैं झूठ न बोल सकूं। मैं चोरी करने आया हूं।
फकीर ने ठंडी श्वास ली और उसने कहाः बड़े नासमझ हो। भलेमानुष! एकाध-दो दिन पहले खबर तो कर देते तो मैं कुछ इंतजाम कर रखता। यह फकीर की झोपड़ी है। यहां हमेशा कुछ मिल जाए, यह तो बहुत मुश्किल है। और मुझे क्या पता था, आज सुबह ही एक आदमी कुछ रुपये भेंट करने आया था, मैंने वापस कर दिए। तुम्हारा अंदाज होता तो मैं रोक कर रखता। आगे जब भी आओ ऐसा कभी मत करना कि बिना कहे, बिना खबर किए आ जाओ। थोड़े से रुपये पड़े हैं, नाराज न हो तो मैं उन्हें तुम्हें दे दूं। दस रुपये उसके पास थे। उसने कहाः उस आले पर दस रुपये रखे हैं, वह तुम ले लो।
वह चोर तो घबड़ाया हुआ था। उसकी समझ के बाहर थी ये बातें। चोरी उसने बहुत की थी, लेकिन ऐसा आदमी कभी मिला न था। वह जल्दी से घबड़ाहट में दस रुपये उठाया तो उस फकीर ने कहाः इतनी कृपा कर सकोगे क्या, कि एक रुपया छोड़ दो। सुबह-सुबह मुझे जरूरत भी पड़ सकती है। एक रुपया मुझ पर उधारी रही, कभी न कभी चुका दूंगा। उसने जल्दी से रुपया रखा, और वह भागने लगा बाहर। तो उस फकीर ने कहाः मेरे मित्र, रुपये तो कल खत्म हो जाएंगे, उन पर इतना भरोसा मत करो। कम से कम मुझे धन्यवाद तो देते जाओ। धन्यवाद बाद में भी काम पड़ सकता है। उस चोर ने उसे धन्यवाद दिया, और वह चला गया। बाद में वह पकड़ा गया। उस पर और चोरियां भी थीं, यह चोरी भी थी। इस फकीर को भी अदालत में जाना पड़ा।
वह चोर घबड़ाया हुआ था कि अगर उस फकीर ने इतना भी कह दिया कि हां यह आदमी चोरी करने आया था, तो फिर और किसी गवाही की कोई जरूरत नहीं है। वह इतना जाना-माना आदमी था, उसकी बात पर्याप्त प्रमाण हो जाएगी। वह डरा हुआ खड़ा था। मजिस्ट्रेट ने पूछाः उस फकीर को, आप इस आदमी को पहचानते हैं? उस फकीर ने कहाः पहचानने की बात कर रहे हैं, ये मेरे मित्र हैं। और मित्र तो तभी पहचाना जाता है न, दुख में जो अपने पर भरोसा करे, वही तो मित्र है। एक रात जब इस व्यक्ति को जरूरत पड़ गई थी तो यह किसी महल में नहीं गया, मेरे झोपड़े पर आया था। मेरा मित्र है, मुझ पर विश्वास करता है। मजिस्टेªट ने पूछाः इसने आपकी कभी चोरी की थी? उसने कहाः कभी भी नहीं। मैंने इसे नौ रुपये भेंट किए थे। और एक रुपया अब भी इसका मेरे ऊपर उधार है जो मैं चुका नहीं पाया। वह मुझे इसका चुका देना है। और चोरी का तो सवाल ही नहीं है। मैंने इसे रुपये दिए थे, इसने मुझे धन्यवाद दे दिया था। बात समाप्त हो गई थी।
वह चोर तीन वर्ष बाद छूटा। और उस फकीर के झोपड़े पर पहुंच गया। और उसने कहा, उस दिन तुमने कहा था, मित्र हूं। और इन तीन वर्षों में निरंतर सोचता रहा, तुम्हारे अतिरिक्त मेरा कोई भी मित्र नहीं है। और उस दिन तो रात आया था जाने को, अब न जाने को आ गया हूं। अब यहां से नहीं जाऊंगा। तुमने मेरी जिंदगी बदल दी, उस चोर ने कहा। उस फकीर ने कहाः मैंने तो कुछ भी नहीं किया। उस चोर ने कहाः तुम पहले आदमी हो जिंदगी में जिसने मेरे भीतर भी कुछ अच्छाई देखी। तुम पहले आदमी हो जिसने मेरी जिंदगी का कोई प्रकाशोज्जवल पहलू देखा। तुम पहले आदमी हो जिसने मेरी आत्मा को चुनौती दे दी। तुम पहले आदमी हो जिसने मेरे भीतर के सारे संगीत को खींच कर बाहर ला दिया। और तो जो भी मुझे मिला था उसने मेरा अंधेरा पहलू देखा था। और जब सारी दुनिया मुझमें अंधकार देखती थी तो मैं धीरे-धीरे उसी अंधकार में घिरता चला गया। और उसी अंधकार को मैंने स्वीकार कर लिया था। तुमने मेरे जीवन को चुनौती दे दी, तुमने पहली दफा मुझे यह खयाल पैदा कर दिया--मैं भी एक अच्छा आदमी हो सकता हूं।
तो जब हम जीवन में आनंद को, शुभ को, मंगल को, प्रकाश को देखना शुरू करते हैं तो न केवल हमारी दृष्टि आनंद से भर जाती है, बल्कि हम जहां भी मंगल और शुभ को देखते हैं वहां भी हम चुनौती खड़ी कर देते हैं--उस व्यक्ति के लिए भी कि उसके भीतर से शुभ का आविर्भाव हो जाए, और विकास हो जाए। यह दुनिया इतनी बुरी, बुरी दिखाई पड़ रही है, इस कारण नहीं कि लोग इतने बुरे हैं, बल्कि इस कारण कि सभी लोगों को बुराई के अतिरिक्त देखने की और कोई आदत नहीं है।
ओशो