बर्नार्ड शा के जीवन
में यूं उल्लेख है। उसने आधी रात को अपने चिकित्सक को फोन किया। बर्नार्ड शा की
उम्र भी तब अस्सी साल थी। और चिकित्सक भी उसका पुराना,
पचास साल पुराना चिकित्सक था। उसकी उम्र कोई पचासी साल थी।
आधी रात को खबर की कि जल्दी आओ, मुझे यूं लगता है कि हृदय का दौरा पड़ा है। बचूंगा नहीं!
नहीं तो आधी रात तुम्हें जगाता नहीं। और मुझे मालूम है कि तुम मुझसे भी ज्यादा
बूढ़े,
मगर तुम पर ही मेरा भरोसा है और तुम्हीं मेरे शरीर को जानते
भी हो। मजबूरी है, क्षमा करना, लेकिन
आना होगा।
बूढ़ा चिकित्सक उठा।
किसी तरह पहुंचा। सीढ़ियां चढ़ा। आधी रात, बूढ़ा आदमी, हाथ में डाक्टर का वजनी बैग, लंबी सीढ़ियों की चढ़ाई। जब ऊपर पहुंचा तो बैग को तो पटक दिया
उसने फर्श पर और कुर्सी पर लेट गया, हांफ रहा था और पसीना-पसीना हो रहा था। बर्नार्ड शा घबड़ा कर
बैठ गया कि क्या मामला है! उस डाक्टर ने तो आंखें बंद कर लीं,
उसने इतना ही कहा कि मालूम होता है हृदय का दौरा पड़ रहा है।
बर्नार्ड शा भागा, ठंडा पानी छिड़का, पंखा किया, हाथ-पैर
दबाए,
नाड़ी देखी, जो भी बन सकता था वह किया। पंद्रह-बीस मिनट में डाक्टर थोड़ा
स्वस्थ हुआ, आंख
खोलीं,
अपना बैग उठाया और बर्नार्ड शा से कहा कि मेरी फीस!
बर्नार्ड शा ने कहा,
क्या मजाक करते हो! फीस मैं तुमसे मांगूं या तुम मुझसे?
इलाज तुमने मेरा किया ही नहीं;
इलाज तो दूर, आकर और झंझट खड़ी कर दी। मैं तो भूल ही गया कि मुझे हृदय का
दौरा पड़ा है। मैं तो तुम्हें बचाने में लग गया।
चिकित्सक ने कहा कि
वह मेरा इलाज था। तुम्हें हृदय का दौरा भुलाने के लिए मैंने यह व्यवस्था की थी,
यह आयोजन था।
बर्नार्ड शा ने
जिंदगी में बहुत लोगों से मजाक किए हैं, लेकिन उसने लिखा है कि मेरे चिकित्सक ने मुझे मात दे दी।
फीस देनी पड़ी। बात सच थी। क्योंकि मेरी बीमारी तो तिरोहित हो चुकी थी,
मैं तो भूल ही चुका था। सामने आदमी मर रहा हो,
किसको फुरसत कि अपना हृदय का दौरा,
छोटी-मोटी धड़कन...। बूढ़ा पुराना परिचित डाक्टर मर रहा है,
बेचारा आधी रात आया है, इसकी फिक्र करो। मेहमान की फिक्र करो कि अपनी फिक्र करो।
मैं तो भूल ही गया--बर्नार्ड शा ने लिखा है--और फीस देनी पड़ी। उचित भी मालूम पड़ी।
यहां जिंदगी में लोग
बीमारियां बदल लेते हैं। और अगर अपनी बीमारियां काम नहीं आतीं तो दूसरों की
बीमारियां ले लेते हैं। अगर अकेले तुम दुखी हो रहे हो,
विवाह कर लो। महादुखी हो जाओगे,
पुराने दुख विस्मृत हो जाएंगे।
ओशो : आपुई गई
हिराय-(प्रश्नत्तोर)