एकनाथ लौटते थे रामेश्वरम की तरफ, और कुछ उनके साथ थे, वे तीर्थयात्रा को गए थे, एकनाथ भी गए थे। लौट रहे हैं काशी से पानी लेकर रामेश्वरम के भगवान को चढ़ाने। एक वन, एक मरुस्थल, लंबी यात्रा है, और एक गहरे सूखे मरुस्थल में जहां दोपहर सूरज तप रहा है और रेत ही रेत है कहीं पानी नहीं है, एक प्यासा गधा तड़प रहा है। अब गधा जो है वह बिलकुल गैर-आध्यात्मिक प्राणी मालूम पड़ता है। गधे को कौन स्प्रिचुअल माने? गधे को कौन आध्यात्मिक मान सकता है? आदमी को ही नहीं मानते लोग तो गधे को कौन मानेगा? वह तड़फता रहा। पानी सबके पास है। गंगा का जल सबके पास है। लेकिन वे जा रहे हैं रामेश्वरम के पत्थर पर पानी चढ़ाने। वे सब मुंह फेर लेते हैं उस गधे को मरते देख कर; लेकिन एकनाथ रुक जाते हैं और अपने कमंडल से पानी उस गधे को पिलाने लगते हैं। सारे लोग चिल्लाते हैं कि यह क्या कर रहे हो, पाप, जो पानी भगवान के लिए लाए हो वह गधे को पिला रहे हो? एकनाथ कहते हैं कि भगवान यहां प्यासा तड़प रहा हो, तो मेरा तीर्थ तो पूरा हो गया, मैं वापस लौट जाता हूं। मेरी प्रार्थना तो सुन ली गई। वह जो रामेश्वरम में बैठा है वह यहीं आ गया है। और वे कहते हैं कि पागल तो नहीं हो गए हो, एक गधे को भगवान कह रहा हो? वे एकनाथ को भी समझा गए कि यह भ्रष्ट हुआ, पागल हुआ। अपनी तीर्थ यात्रा पर निकल गए।
एक आदमी मंदिर भागा चला जा रहा है हाथ में थाली लिए हुए भगवान को प्रसाद लगाने जा रहा है और बगल में एक भगवान भूखा मर रहा है, वह उसकी तरफ देखता भी नहीं, वह भागा चला जा रहा है, वह भगवान को प्रेम करता है। यह तो आदमी था नाशवान, यह तो मर ही जाएगा, वह तो पत्थर की मूर्ति को प्रेम करता है जो कभी नहीं मरती, उसको भोग लगाने जा रहा है। अगर दुनिया कभी समझदार होगी तो इन सबकी गिनती पागलों में नहीं तो किनमें होगी कि जो पत्थर की मूर्ति को भोजन दिए चले जा रहे हैं और एक जिंदा आदमी मर रहा है।
ओशो : प्रेम-दर्शन