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20 October 2019

जीवन का सबसे बड़ा सत्य


जीवन का सबसे बड़ा सत्य :

महाभारत में बड़ी प्राचीन, बड़ी मीठी कथा है कि जब पांडव जंगल में अज्ञातवास पर हैं, भटकते रहे हैं दिन में--दोपहरी--पानी नहीं मिला। सांझ एक भाई खोजने निकला, झील मिल गई। लेकिन जब वह झील में पानी भरने को झुका, तो आवाज आई--रुको! जब तक मेरे प्रश्न का उत्तर न दो, तब तक पानी न भर सकोगे। कोई यक्ष उस झील पर कब्जा किए था। पूछा, क्या है तुम्हारा प्रश्न? यक्ष ने कहा, अगर उत्तर न दिया या उत्तर गलत हुआ, तो तत्क्षण मृत हो जाओगे। अगर उत्तर दिया, तो जल भी मिलेगा और अनंत भेंट भी दूंगा।
प्रश्न था कि मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सत्य क्या है? जो उत्तर दिया--जो भी दिया हो--वह ठीक नहीं था। एक भाई गिरा, मृत हो गया। ऐसे चार भाई एक के बाद एक गए। अंत में युधिष्ठिर गए कि हो क्या रहा है! चारों भाइयों को मरे हुए पाया। यक्ष की आवाज आई--सावधान! पहले मेरे प्रश्न का उत्तर, अन्यथा वही होगा जो इनका हुआ है। पानी एक ही शर्त पर भर सकते हो, वह मेरा ठीक उत्तर मिल जाए। क्योंकि उसी उत्तर पर मेरी मुक्ति निर्भर है। जिस दिन मुझे ठीक उत्तर मिल जाएगा, उस दिन मैं भी मुक्त हो जाऊंगा; यह मेरा बंधन यक्ष होने का टूट जाएगा।
प्रश्न है: मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा सत्य क्या है?
युधिष्ठिर ने कहा, यही कि चाहे कितने ही अनुभव मिलें, मनुष्य सीख नहीं पाता। यक्ष मुक्त हो गया। चारों भाई पुनरुज्जीवित हो गए। उसकी प्रसन्नता में, मुक्ति की प्रसन्नता में उसने चारों को पुनरुज्जीवन दिया।
मनुष्य को कितने ही अनुभव हो जाएं, सीख नहीं पाता। एक स्त्री से छूटता है, दूसरी! दूसरी से छूटता है, तीसरी! एक उपद्रव मिटता है, दूसरा! एक सफलता का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, तो दूसरा! एक दौड़ बंद नहीं हो पाती कि दूसरी शुरू कर देता है, दौड़ से नहीं मुक्त होता। एक वासना गिर नहीं पाती कि दस खड़ी कर लेता है। वासना की भ्रांति नहीं दिख पाती। और हर चीज के पीछे अपने तर्क खोज लेता है, अपने कारण खोज लेता है। और कभी यह नहीं देखता कि भूल मेरी होगी। सदा भूल किसी और पर थोप देता है। निश्चिंत होकर फिर भूल करने में लग जाता है।
ओशो : भज गोविंद मुढ़मते