Republic Day - 2019

25 September 2019

मीरा का कृष्ण

मीरा का कृष्ण :
 
कृष्ण इतने विराट हैं कि तुम अपनी मनपसंद का कृष्ण चुन सकते हो।
मीरा का कृष्ण मीरा का पति है। मीरा का कृष्ण मीरा का प्यारा है, प्रीतम है। छोटे बच्चे की तरह मीरा ने कृष्ण को नहीं चुना है; संगी—साथी की तरह, मित्र की तरह। जैसे कोई स्त्री पति को चुने, ऐसा मीरा ने कृष्ण को चुना है।
प्यारी कहानी है। छोटी थी मीरा। और घर में एक साधु ठहरा। उस साधु के पास कृष्ण की बड़ी प्यारी प्रतिमा थी। छोटी सी प्रतिमा! सांवले सलोने कृष्ण की। मीरा छोटी थी, होगी तीन—चार साल की। सुबह साधु ने पूजा के लिए प्रतिमा निकाली, और मीरा मचल गई। वह प्रतिमा चाहती थी। साधु देने को राजी नहीं था। साधु ने साफ इनकार भी कर दिया, मीरा की मां ने भी समझाया, पैसा भी ले लो। उसने कहा: ये मेरे भगवान हैं, इन्हें मैं बेच नहीं सकता हूं? यह मैं नहीं दे सकता। यह मुझे बड़ी प्यारी मूर्ति है। इसके बिना मैं नहीं रह सकता।
साधु अपनी मूर्ति लेकर चला गया। दूसरे गांव में रात सोया और कथा है कि कृष्ण उसे प्रकट हुए निद्रा में और कहा कि तूने ठीक नहीं किया। जिसकी मूर्ति थी, उसे दे दे।
उसने कहा: मूर्ति मेरी है, उस लड़की की नहीं। कृष्ण ने कहा: उसी की है। तेरा संबंध मुझसे औपचारिक है, तू और मूर्ति उठा लेना, उससे भी चलेगा। उसका संबंध मुझसे बहुत गहरा है। यह मूर्ति उसी की है, तू लौट कर उसको दे आ। इसी वक्त जा और दे आ। तूने ठीक नहीं किया।
और वहां मीरा थी कि दिन भर भूखी बैठी थी। उसने खाना नहीं लिया। उसने कहा: मूर्ति मिलेगी तो ही खाना लूंगी, नहीं तो अब मर जाऊंगी। मां परेशान है, घर के लोग परेशान हैं। अब यह भी कोई जिद्द है! क्योंकि दूसरे की चीज है, वह दे, न दे। फिर ऐसी—वैसी चीज नहीं है, उसके आराध्य देव की प्रतिमा है; वह नहीं दे तो कुछ नाराजगी की बात नहीं है, बिलकुल स्वाभाविक है।
लेकिन दूसरे दिन सुबह होते—होते वह साधु भागा हुआ आया। उसने कहा: मुझे क्षमा करो! मीरा के पैरों में गिर पड़ा और कहा: सम्हालो अपने कृष्ण को, वे तुम्हारे हैं। फिर तो मीरा चौबीस घंटे उस मूर्ति को अपनी छाती से लगाए घूमती रहती। फिर पड़ोस में एक विवाह हुआ किसी लड़की का। मीरा वहां गई है अपने कृष्ण को लिए हुए। पांच साल की होगी। और मां से पूछने लगी: इसका विवाह हो रहा है, मेरा विवाह कब होगा? और मां ने ऐसे ही मजाक में कहा: तेरा विवाह तो हो गया न! ये कृष्णकन्हैया से! और उसने बात मान ली। उस क्षण के बाद उसने कृष्ण के अतिरिक्त किसी को पति—रूप में नहीं देखा। विवाह भी हुआ। लेकिन कृष्ण ही पति रहे। वह कृष्णमय हो गई।
मीरा का कृष्ण गीता का कृष्ण नहीं है। ऐसा मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना था: मीरा को कृष्ण के फलसफे में, उनके दर्शनशास्त्र में कोई रस नहीं है। गीता दर्शनशास्त्र है। वह कृष्ण का दार्शनिक वक्तव्य है। मीरा को कृष्ण की आंखों में रस है, उनके शब्दों में नहीं। मीरा को कृष्ण के रूप में रस है, उनके सिद्धांतों में नहीं। मीरा को कृष्ण में रस है; क्या कहते हैं, इसमें नहीं।
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खूटियों में बंधा आदमी




खूटियों में बंधा आदमी :
एक रात एक बड़ी घनी अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले के पास सौ ऊंट थे। उन्होंने ऊंट बांधे, खूंटियां गड़ाईं, लेकिन आखिर में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और एक रस्सी कहीं खो गई थी। आधी रात, बाजार बंद हो गए थे। अब वे कहां खूंटी लेने जाएं, कहां रस्सी! तो उन्होंने सराय के मालिक को उठाया और उससे कहा कि बड़ी कृपा होगी, एक खूंटी और एक रस्सी हमें चाहिए, हमारी खो गई है। निन्यानबे ऊंट बंध गए, सौवां अनबंधा है–अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है। उस बूढ़े आदमी ने कहाः घबड़ाओ मत। मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी। लेकिन बड़े पागल आदमी हो। इतने दिन ऊंटों के साथ रहते हो गए, तुम्हें कुछ भी समझ न आई। जाओ और खूंटी गाड़ दो और रस्सी बांध दो और ऊंट को कह दो–सो जाए। उन्होंने कहाः पागल हम हैं कि तुम? अगर खूंटी हमारे पास होती तो हम तुम्हारे पास आते क्यों? कौन सी खूंटी गाड़ दें? उस बूढ़े आदमी ने कहाः बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो। तुम जाओ, सिर्फ खूंटी ठोकने का उपक्रम करो। अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ऊंट का क्या विश्वास? ऊंट का क्या हिसाब? जाओ ऐसा ठोको, जैसे खूंटी ठोकी जा रही है। गले पर रस्सी बांधों, जैसे कि रस्सी बांधी जाती है। और ऊंट से कहो कि सो जाओ। ऊंट सो जाएगा। अक्सर यहां मेहमान उतरते हैं, उनकी रस्सियां खो जाती हैं। और मैं इसलिए तो रस्सियां-खूंटियां रखता नहीं, उनके बिना ही काम चल जाता है। मजबूरी थी, उसकी बात पर विश्वास तो नहीं पड़ता था। लेकिन वे गए, उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। सिर्फ आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूंटी ठुकती थी, वह बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया। वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए। सुबह उठे, सुबह जल्दी ही काफिला आगे बढ़ना था। उन्होंने निन्यानबें ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए। और सौवें की तो कोई खूंटी थी नहीं जिसे निकालते। उन्होंने उसकी खूंटी न निकाली। उसको धक्के दिए। वह उठता न था, वह नहीं उठा। उन्होंने कहाः हद हो गई, रात धोखा खाता था सो भी ठीक था, अब दिन के उजाले में भी! इस मूढ़ को खूंटी नहीं दिखाई पड़ती कि नहीं है? वे उसे धक्के दिए चले गए, लेकिन ऊंट ने उठने से इनकार कर दिया। ऊंट बड़ा धार्मिक रहा होगा। वे अंदर गए, उन्होंने उस बूढ़े आदमी को कहा कि कोई जादू कर दिया क्या? क्या कर दिया तुमने, ऊंट उठता नहीं। उसने कहाः बड़े पागल हो तुम, जाओ पहले खूंटी निकालो। पहले रस्सी खोलो। उन्होंने कहाः लेकिन रस्सी हो तब…। उन्होंने कहाः रात कैसे बांधी थी? वैसे ही खोलो। गए मजबूरी थी। जाकर उन्होंने खूंटी उखाड़ी, आवाज की, खूंटी निकली, ऊंट उठ कर खड़ा हो गया। रस्सी खोली, ऊंट चलने के लिए तत्पर हो गया। उन्होंने उस बूढ़े आदमी को धन्यवाद दिया और कहाः बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है। उन्होंने कहा कि नहीं, यह ऊंटों की जानकारी से सूत्र नहीं निकला, यह सूत्र आदमियों की जानकारी से निकला है। आदमी ऐसी खूटियों में बंधा होता है जो कहीं भी नहीं हैं। और ऐसी रस्सियों में जिनका कोई अस्तित्व नहीं है। और जीवन भर बंधा रहता है। और चिल्लाता हैः मैं कैसे मुक्त हो जाऊं ? कैसे परमात्मा को पा लूं, कैसे आत्मा को पा लूं? मुझे मुक्ति चाहिए, मोक्ष चाहिए–चिल्लाता है। और हिलता नहीं अपनी जगह से, क्योंकि खूंटियां उसे बांधे हैं। वह कहता हैः कैसे खोलूं इन खूटियों को?
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