मैंने सुना है कि महाराष्ट्र के एक संत एकनाथ यात्रा पर जाते थे तो गांव के बहुत लोग उनके साथ जा रहे थे। उन दिनों यही रिवाज था कि अगर तीर्थयात्रा पर भी जाना हो तो किसी संत के साथ जाना। क्योंकि संत के साथ जाओगे तो ही तीर्थ पहुंचोगे। अकेले चले जाओगे, तीर्थ आ भी जाएगा मगर तुम पहुंचोगे नहीं, क्योंकि तुम्हें तीर्थ का कुछ पता नहीं है। जो पहुंच गया हो तीर्थ, उसके साथ तीर्थयात्रा पर लोग जाते थे। तो गांव के बहुत लोग एकनाथ के साथ हो लिये। गांव का एक चोर भी—जाहिर चोर; छोटे गांव जब थे दुनिया में तो सभी चीजें जाहिर थीं कि कौन चोर है, कौन जुआरी है, कौन शराबी है; छोटे गांव में बचे क्या, छिपे क्या?
वह चोर भी एकनाथ के साथ जाना चाहता था, उसने कहा कि मैं भी चलूंगा। एकनाथ ने कहा, कि भाई, तेरी आदत पुरानी है—वह दूसरे नंबर का अपराधी था—तू चूकेगा नहीं अपनी आदत से। हम तुझे भलीभांति जानते हैं। क्योंकि मौका आया होगा कि वह एकनाथ तक की चीजें चुरा ले गया होगा। कि तू भाई न ही जा तो अच्छा। क्योंकि कई लोग जत्थे में होंगे, और तू चीजें—मीजें चुराका और परेशानी खड़ी होगी। तू बाज न आएगा, लंबी यात्रा है, फिर तुझे बीच से भेज भी न सकेंगे, लोग शिकायत भी करेंगे।
पर उस चोर ने कहा, मैं कसम खाता हूं अब आपके सामने क्या, कसम खाता हूं कि चोरी नहीं करूंगा। जिस दिन से यात्रा शुरू होगी उस दिन से लेकर जिस दिन यात्रा अंत होगी तब तक चोरी नहीं करूंगा, आगे की मैं नहीं कहता। मगर यात्रा में नहीं करूंगा, यह तो आप वचन मेरा स्वीकार करो। एकनाथ ने कहा ठीक!
दिन अच्छे थे वे। अब तो तुम साहूकार के वचन का भी भरोसा नहीं कर सकते, तब चोर के वचन का भी भरोसा किया जा सकता था। तब डाकुओं में भी एक भलापन होता था, अब भले आदमियों में भी डाकू हैं।
पर उस चोर ने कहा, मैं कसम खाता हूं अब आपके सामने क्या, कसम खाता हूं कि चोरी नहीं करूंगा। जिस दिन से यात्रा शुरू होगी उस दिन से लेकर जिस दिन यात्रा अंत होगी तब तक चोरी नहीं करूंगा, आगे की मैं नहीं कहता। मगर यात्रा में नहीं करूंगा, यह तो आप वचन मेरा स्वीकार करो। एकनाथ ने कहा ठीक!
दिन अच्छे थे वे। अब तो तुम साहूकार के वचन का भी भरोसा नहीं कर सकते, तब चोर के वचन का भी भरोसा किया जा सकता था। तब डाकुओं में भी एक भलापन होता था, अब भले आदमियों में भी डाकू हैं।
चोर ने कहा तो एकनाथ ने मान लिया कि ठीक है। और चोर ने अपने वचन का पालन किया। महीनों लगे यात्रा में, लेकिन चोरी न की। लेकिन एक उपद्रव शुरू हुआ। उपद्रव यह हुआ कि एक आदमी के बिस्तर की चीजें दूसरे आदमी के बिस्तर में मिलें। किसी के संदूक की चीजें किसी और के संदूक में मिलें। मिल तो जाएं लेकिन चीजें बड़बड़ होने लगीं।
एकनाथ को शक हुआ। उन्होंने पूछा उसको कि भई तू कुछ कर तो नहीं रहा है? उसने कहा कि देखिये, आपसे मैंने कहा कि चोरी नहीं करूंगा, सो मैं नहीं कर रहा हूं। लेकिन मेरा अभ्यास तो मुझे जारी रखना पड़ेगा। रात मुझे नींद ही नहीं आती। तो मैं चुरा तो नहीं रहा हूं, एक चीज मैंने नहीं चुरायी है, अगर इसके खीसे से निकालकर उसके खीसे में कर देता हूं तो मुझसे राहत मिलती है। फिर मैं निश्चित हूं जब दो—तीन बजे रात को कुछ काम कर लिया, तो फिर सो जाता हूं। अब इसमें आप बाधा न दो। चीजें मिल ही जाएंगी उनको, सभी यहीं हैं, कोई कहीं जाता नहीं है, मगर आप जानते ही हो लौटकर फिर मुझे काम तो अपना चोरी का करना ही पड़ेगा, तो अभ्यास। ऐसे अभ्यास चूक जाए! उस चोर ने कहा देखो, आप भी रोज भगवान की प्रार्थना करते कि नहीं, ऐसे मेरा यह काम है।
तो एक अभ्यास, आदत से काम हो रहे हैं। वे ज्यादा घातक हैं पहले से। उनसे भी ज्यादा घातक तीसरे हैं। जो अभ्यास से भी ज्यादा गहरे हैं, आदत से भी ज्यादा गहरे हैं। क्योंकि किसी को सिगरेट पीनी हो, शराब पीनी हो तो सीखनी पड़ती है, लेकिन लोभ अनसीखा है; क्रोध अनसीखा है, किसी को जुआ खेलना हो तो सीखना पड़ता है। सीखोगे तो ही सीख पाओगे। जुआरियों का सत्संग मिलेगा तो सीख पाओगे। चोरों के साथ रहतौ तो चोरी सीख लोगे लेकिन लोभ, क्रोध, काम, मोह, उनको सीखना नहीं पड़ता। उनको हम जन्म के साथ लेकर आए हैं। वह हमारे जन्मों—जन्मों की मूर्च्छा हैं।
#ओशो : अथातो भक्ति जिज्ञासा
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