Republic Day - 2019

29 September 2018

बस एक कदम और !



कोलेरेडो में अमेरिका में जब पहली दफा सोने की खदानें मिलीं, तो एक बहुत अदभुत घटना घटी, मुझे प्रीतिकर रही है। जब पहली दफा सोना मिला अमेरिका के कोलेरेडो में--और आज सबसे ज्यादा सोना कोलेरेडो में है, सबसे ज्यादा सोने की खदानें हैं--तो किसानों को ऐसे ही खेत में काम करते हुए सोना मिलना शुरू हो गया। पहाड़ों पर लोग चढ़ते, और सोना मिल जाता। लोगों ने जमीनें खरीद लीं और अरबपति हो गए।

एक आदमी ने सोचा कि छोटी-मोटी जमीन क्या खरीदनी है; एक पूरा पहाड़ खरीद लिया। सब जितना पैसा था, लगा दिया। कारखाने थे, बेच दिए। पूरा पहाड़ खरीद लिया। खरबपति हो जाने की सुनिश्चित बात थी। जब छोटे-छोटे खेत में से खोदकर लोग सोना निकाल रहे थे, उसने पूरा पहाड़ खरीद लिया।

लेकिन आश्चर्य, पहाड़ पर खुदाई के बड़े-बड़े यंत्र लगवाए, लेकिन सोने का कोई पता नहीं! वह पहाड़ जैसे सोने से बिलकुल खाली था। एक टुकड़ा भी सोने का नहीं मिला। कोई तीन करोड़ रुपया उसने लगाया था पहाड़ खरीदने में, बड़ी मशीनरी ऊपर ले जाने में। लोग कुदालियों से खोदकर सोना निकाल रहे थे कोलेरेडो में। सारी दुनिया कोलेरेडो की तरफ भाग रही थी। और वह आदमी बर्बाद हो गया कोलेरेडो में जाकर। उसकी हालत ऐसी हो गई कि मशीनों को पहाड़ से उतारकर नीचे लाने के पैसे पास में न बचे कि मशीनें बेच सके। ठप्प हो गया।
अखबारों में खबर दी उसने कि मैं पूरा पहाड़ मय मशीनरी के बेचना चाहता हूं। उसके मित्रों ने कहा, कौन खरीदेगा! सारे अमेरिका में खबर हो गई है कि उस पहाड़ पर कुछ नहीं है। पर उसने कहा कि शायद कोई आदमी मिल जाए, जो मुझसे ज्यादा हिम्मतवर हो। कोई इतना पागल नहीं है, लोगों ने कहा। लेकिन उसने कहा, एक कोशिश कर लूं। क्योंकि मैं सोचता हूं, कोई मुझसे हिम्मतवर मिल सकता है।

और एक आदमी मिल गया, जिसने तीन करोड़ रुपए दिए और पूरा पहाड़ और पूरी मशीनरी खरीदी। जब उसने खरीदी, तो उसके घर के लोगों ने कहा कि तुम बिलकुल पागल हो गए हो। दूसरा आदमी बर्बाद हो गया; अब तुम बर्बाद होने जा रहे हो! उस आदमी ने कहा, जहां तक पहाड़ खोदा गया है, वहां तक सोना नहीं है, यह साफ है। इसलिए मामला काफी हो चुका है। अब सोना नीचे हो सकता है। जहां तक खोदा गया है, वहां तक नहीं है। हम भी इस झंझट से बचे। वह आदमी मेहनत कर चुका, जो बेकार मेहनत थी। अब आगे मेहनत करनी है। बहुत-सा तो कट चुका है पहाड़। कौन जाने नीचे सोना हो! लोगों ने कहा कि इस झंझट में मत पड़ो। और जमीनें बहुत हैं, जिन पर ऊपर ही सोना है। पर उस आदमी ने वह पहाड़ खरीद ही लिया।

और आश्चर्य की बात कि पहले दिन की खुदाई में ही कोलेरेडो की सबसे बड़ी सोने की खदान मिली--सिर्फ एक फुट मिट्टी की पर्त और। एक फुट मिट्टी की पर्त और! और कोलेरेडो का सबसे बड़ा सोने का भंडार उस पहाड़ पर मिला। और वह आदमी कोलेरेडो का सबसे बड़ा खरबपति हो गया।
एक फुट! कभी-कभी एक इंच से भी चूक जाते हैं। कभी-कभी आधा इंच से भी चूक जाते हैं।

कृष्ण कहते हैं, पिछले जन्मों की यात्रा, अगर थोड़ी-बहुत अधूरी रह गई हो, कहीं हम चूक गए हों, तो किसी दिन अनायास, किसी जन्म में अनायास बीज फूट जाता है; दीया जल जाता है; द्वार खुल जाता है। और कई बार ऐसा होता है कि इंचभर से ही हम चूक जाते हैं। और इंचभर से चूकने के लिए कभी-कभी जन्मों की यात्रा करनी पड़ती है।
#ओशो : गीता दर्शन

द्रष्टि

सारी बात दृष्टि की है :

ऐसा हुआ कि मैं अपने एक मित्र के साथ एक बगीचे की बेंच पर बैठा था। विश्वविद्यालय में जब पढ़ता था तब की बात है। सांझ का वक्त था, धुंधलका उतर आया था। और दूर से एक लड़की आती हुई मालूम पड़ी। उस मित्र ने उस लड़की की तरफ कुछ वासना—भरी बातें कहीं। जैसे—जैसे लड़की करीब आने लगी, वह थोड़ा बेचैन हुआ। मैंने पूछा कि मामला क्या है? तुम थोड़े लड़खड़ा गए! उसने कहा कि थोड़ा रुके; मुझे डर है कि कहीं यह मेरी बहन न हो।

और जब वह और करीब आई और बिजली के खंभे के नीचे आ गई—वह उसकी बहन ही थी।

मैंने पूछा, अब क्या हुआ? यह लड़की वही है; जरा धुंधलके में थी, वासना जगी। पहचान न पाए, वासना जगी। अब पास आ गई, अब थोड़ा खोजो अपने भीतर, कहीं वासना है? वह कहने लगा, सिवाय पश्चात्ताप के और कुछ भी नहीं। दुखी हूं कि ऐसी बात मैंने कही, कि ऐसे शब्द मेरे मुंह से निकले। मैंने उससे कहा कि जरा खयाल रखना, सारी बात दृष्टि की है। अब यह भी हो सकता है कि और पास आकर पता चले, तुम्हारी बहन नहीं; फिर नजर बदल जाएगी; फिर नजर बदल जाएगी, फिर वासना जगह कर लेगी।

सत्य तो एक ही है। जब तुम लोभ की नजर से देखते हो, संसार बन जाता है।  जब तुम निर्वाण की नजर से देखते हो, परमात्मा बन जाता है।

कभी राह मैंने बदली तो जमीं का रक्स बदला
कभी सांस ली ठहरकर तो ठहर गया जमाना
ओशो : एस धम्‍मो सनंतनो

26 September 2018

कमाल का कमाल


कबीर का बेटा कमाल:


जिस दिन कबीर ने कमाल को कमाल नाम दिया था, उसी दिन स्वीकार कर लिया था कि है कुछ कमाल इस लड़के में! कुछ बात हो कर रहेगी। मगर कमाल इतना था, कि कबीर को भी आत्मसात कर लेना मुश्किल था। यूं तो वे बड़े हिम्मत के आदमी थे। बड़े फक्कड़ आदमी थे। कहां उनके मुकाबले का फक्कड़ हुआ भारत में!
कबीर कहते हैं:
कबिरा खड़ा बजार में लिए लुकाठी हाथ।
घर जो बारै अपना चले हमारे साथ।।
लट्ठ लिए बाजार में खड़ा हूं। है कोई माई का लाल! चलता है मेरे साथ! तो लगा दे अपने घर में आग। ऐसे हिम्मत का आदमी! मगर कमाल, आखिर कबीर का ही बेटा था। वह और दो कदम आगे चला गया। जैसे मैं तुमसे कह रहा हूं कि शंकराचार्य से मैं दो कदम आगे! जाना भी चाहिए। शंकराचार्य को बीते हजार साल हो गए। अगर हजार साल में दो कदम भी न चले, तो हद्द हो गई। तो फिर जिंदा क्या हो! मर ही गए! मर ही जाते तो अच्छा था।
कबीर कहते थे, कमाल वही करता था। मगर कई बातें महात्मा कहते हैं--करने की नहीं होती। जैसे कबीर कहते थे--सोना मिट्टी है। यह तो बड़ी प्रचलित बात थी कि सोना मिट्टी है। कबीर कहते थे, बचो कामिनी-कांचन से।
कमाल को यह बात न जंचती, कि जब सोना मिट्टी है, तो बचना क्या? जब मिट्टी है, तो बचना क्या? या कहो कि मिट्टी नहीं है--तो फिर बचने की बात उठती है!
काशी नरेश को पता चला कि कमाल कुछ उल्टी-सीधी बातें कहता है। अपने बाप के खिलाफ कह देता है। देखें!
परीक्षा करने के लिए वह लाया एक बहुत बड़ा हीरा--जो उसके पास सबसे कीमती हीरा था। और उसने कमाल को भेंट किया। उसने सुना था कि कमाल भेंट ले लेता है। कबीर तो भेंट लेते नहीं थे। कबीर को कुछ लाए कोई, तो वे कहें कि नहीं भाई, मैं परिग्रह नहीं करता। अरे, इस मिट्टी को मेरे सामने से ले जाओ। मुझे नहीं चाहिए सोना। सोना मिट्टी है। मैं क्या करूंगा हीरा। हीरा तो कंकड़-पत्थर है।
कमाल बगल के ही झोपड़े में रहता था। कबीर उसको अपने झोपड़े में नहीं रहने देते थे। क्योंकि कबीर जिसको लौटा देते...कोई सोना लाता, कोई हीरा लाता, कोई चांदी लाता...। जिसको कबीर लौटा देते, कमाल बाहर ही बैठा रहता, वह कहता, रख दे रे! यहीं रख दे। अरे, जब मिट्टी है--कहां ले जा रहा है! छोड़ जा।
कबीर को बहुत दुख होता है कि मैं तो किसी तरह उसको भगाया और इसने रखवा लिया! लोग क्या सोचेंगे कि यह तो तरकीब दिखती है। बाप बेटे की सांठ-गांठ दिखती है! इधर बाप कहता है कि सब मिट्टी है, ले जा। और बेटा कहता है कि रख जाओ। कहां ढोते फिरते हो?
तो उसको कहा कि तू भैया, बगल के झोपड़े में रह। यह तेरा ज्ञान तू अलग चला! तो कमाल अलग रहने लगा।
काशी नरेश ने आकर हीरा भेंट किया। कमाल ने कहा, क्या लाए! लाए भी तो कंकड़-पत्थर! न खा सकते, न पी सकते। अरे, कुछ फल लाते, कुछ मिठाई लाते! बात पते की कही कि क्या करूंगा इसका!
नरेश ने सोचा कि अरे, लोग तो कहते थे कि वह रखवा लेता है! और यह तो बिलकुल और ही बात कर रहा है! तो उसने कहा कि मेरी आंख खुल गई। मैं तो कुछ और ही आपके संबंध में सुना था।
उठ कर चलने लगा हीरे को लेकर। उसने कहा, रुको, अब ले ही आए, तो अब मिट्टी कहां वापस ले जाते हो? समझे नहीं कि मिट्टी है! छोड़!
तब नरेश समझा कि यह आदमी तो बड़ा हद्द का है! पहले तो ऐसा जंचा कि बिलकुल महात्मा जैसी बात कर रहा है। अब तरकीब की बात कर रहा है कि छोड़!
मगर वह भी परीक्षा ही लेने आया था। उसने कहा, कहां रख दूं?
कमाल हंसने लगा कि फिर ले जा। क्योंकि जब तू पूछता है कि कहां रख दूं, तो तू समझा नहीं। तो अभी भी तुझे हीरा ही मालूम हो रहा है। तो पूछता है: कहां रख दूं। अरे, पत्थर को कोई पूछता है कहां रख दूं। कहीं भी रख दे रे! जहां तेरी मर्जी, वहां रख दे।
नरेश तो बड़ी बिबूचना में पड़ा कि यह बात क्या है! उसने वहीं झोपड़े के छप्पर में, सनौलियों का छप्पर था, वहीं हीरे को खोंस दिया। बाहर निकला सोचता हुआ कि इधर मैं बाहर गया, और इसने हीरा निकाला!
कोई पंद्रह दिन बाद आया कि देखें, क्या हाल है! मस्त, कमाल बैठा था। बज रहा था इकतारा। थोड़ी देर इधर-उधर की बात की। फिर नरेश ने पूछा कि हीरे का क्या हुआ?
कमाल ने कहा, कौन-सा हीरा?
अरे, नरेश ने कहा, हद्द कर दी! पंद्रह दिन पहले एक हीरा दे गया था। इतना बहुमूल्य हीरा--भूल ही गए?
कमाल ने कहा, हीरा! एक कंकड़ तुम लाए थे, और पूछते थे, कहां रख दूं; वही तो नहीं! तो तुम जहां रख गए थे, अगर कोई ले न गया हो, तो वहीं होगा। और कोई ले गया हो, तो मुझे पता नहीं!
नरेश ने कहा, है पक्का चालबाज! निकाल भी लिया है इसने--और कह रहा है: कोई ले गया हो, तो मैं क्या कर सकता हूं।
फिर भी उठ कर देखा। चकित हो गया। आंख से आंसू झरने लगे। हीरा वहीं का वहीं रखा था। वही सनौलियों में दबा था। पैरों पर गिर पड़ा।
कमाल ने कहा, क्या पैरों पर गिरते हो! तुम कब समझोगे? तुम अभी भी उसको हीरा मान रहे हो! इस पैरों पर गिरने में भी तुम हीरा ही मान रहे हो। अगर वह वहां न मिलता, कोई ले गया होता--कोई ले ही जाता! कोई मैं यहां चौबीस घंटे उसका पहरा देता हूं? नदी नहाने जाता हूं। गंगा स्नान करता हूं। भजन-कीर्तन करने चला जाता हूं। बाहर भी बैठता हूं। कोई ले ही गया होता। कितने लोग आते-जाते हैं। तो जरूर तुम यही खयाल लेकर जाते कि मैंने निकाल लिया है। अब तुम भैया, उसे ले जाओ। तुम खुद सम्हालो।
और तुम मेरे पैर पर गिरे, उससे पता चलता है कि हीरे का मूल्य है। चूंकि बच गया, इसलिए तुम मेरे पैर पर गिर रहे हो। अगर हीरा न बचता--तो? तो तुम मेरी गरदन काट लेते! ऐसी झंझट यहां न छोड़ो। तुम अपना हीरा ले जाओ।
मगर यह कमाल ज्यादा पते की बात कह रहा है--कमाल की बात कह रहा है!
कबीर ने भी आखिर में इसको स्वीकार किया है। और कबीर ने कहा है: बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल।
कबीरपंथी तो इसको निंदा मानते हैं, कि यह कमाल की निंदा है, कि बूढ़ा वंश कबीर का--कि कबीर का वंश नष्ट कर दिया इस दुष्ट ने! यह दुष्ट क्या पैदा हो गया कमाल, इसने मेरी सब परंपरा खराब कर दी!
लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। मैं तो मानता हूं: कबीर ने यह अंतिम सील-मुहर लगा दी कि बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल!
कबीर यह कह रहे हैं कि मुझसे तो कम से कम एक बेटा भी पैदा हुआ था। इतना भी मैंने संसार चला दिया था। मगर यह कमाल अदभुत है। न इसने विवाह किया, न वंश चलाया। उपजा पूत कमाल! यह है कमाल! और क्या गजब का आदमी कि जैसा मैंने कहा है, वैसा ही माना है, वैसा ही जीया है!
यह स्वीकृति की मुहर है। मगर इसको तो कोई समझे--तो समझे। बुद्धू इसको नहीं समझ सकते।
ओशो : जो बोले सो हरि कथा

કાગડો

શ્રાધ્ધ પક્ષ અને કાગડો :

અમદાવાદની આયુર્વેદીક દવા બનાવતી એક કંપનીના ફાર્માસિસ્ટ નિલેશ કિકાણી કહે છે કે શ્રાધ્ધની કાગવાસ પરંપરા પર્યાવરણ સાથે સીધી રીતે જોડાયેલી છે. કાગડા પ્રકૃતિના પહેરેદાર છે. ઇકો સીસ્ટમના સપોર્ટર પક્ષી છે. ભરપુર ઓક્સીજન જોઈએ તો કાગડાને શ્રાદ્ધ માં ભરપુર ખવડાવો એવી અપીલ તેઓ કરે છે.

શ્રાદ્ધ પક્ષ શરુ થઇ ગયા છે. આ દિવસો દરમ્યાન 15 દિવસના પખવાડિયામાં પોતાના મૃત સ્વજનોની તિથીના દિવસે ધાબે જઈ કાગડાને કાગવાસ નાખવાનો રીવાજ છે. એમ કહેવાય છે કે,  કાગડાઓ આ ભોજન આપવાથી પિતૃ ઓને તેઓ પહોચાડશે છે. અત્યારના જમાનામાં ઓલમોસ્ટ બધા પોતાની જાતને રેશનલ ગણાવે છે માટે આ રીવાજને માન્યતા આપતા નથી.

આ રીવાજનું અનન્ય પાસું એ છે આષાઢ અને શ્રાવણ મહિના કાગડાની સંવનન ઋતુ છે. ભાદરવામાં કાગડાના બચ્ચા ઈંડા માંથી બહાર આવે છે. કાગડાની સંખ્યા જોતા તેમને બચ્ચાના પાલન અને પોષણ માટે ઘણો બધો આહાર જોઈએ.  જેની પૂર્તિ આ રીવાજ થી થાય છે અને કાગડાના બચ્ચાઓને શ્રાધ્ધથી પુરતો તાજો અને પોષ્ટિક આહાર મળી રહે છે અને તેમની નવી પેઢી આસાનીથી ઉછરી જાય છે.

કાગડાને કેમ બચાવવા જોઈએ શા માટે તેમનું સંવર્ધન થવું જોઈએ એની પાછળ એક ઉમદા અને પ્રકૃતિનું શ્રેષ્ઠ કોમ્બીનેશન છે. કાગડા પ્રકૃતિના સફાઈ કામદાર છે અને તે તેમનું આ કામ ખંતપૂર્વક કરે છે. બીજી એક વિશેષતા એ છે કે પીપળાના વૃક્ષના ટેટા કાગડા ખાય છે અને પછી તેના બીજ કાગડાની હગારમાં બહાર આવે છે. કાગડા જ્યાં હગાર કરે તો જ પીપળો ઉગે છે. પીપળાના ટેટા કે તેના બી રોપવામાં આવે તો તે ઉગતા નથી પણ કાગડા ના પેટમાં કેમીકલ પ્રોસેસ થયા પછી જ તેના બીજ ઉગવા લાયક થાય છે. પીપળાના વૃક્ષનો ભારતીય સભ્યતામાં ખુબજ મહત્વ છે. પીપળો પવિત્ર વૃક્ષ ગણાય છે. ભગવાન વિષ્ણુનો તેમાં વાસ હોય છે એવું શાસ્ત્રો કહે છે. પીપળાને પાણી પાવું તે પુણ્યનું કામ ગણાય છે. પીપળાના ઘણાં ઓષધીય ગુણો છે. 

ઇકો સીસ્ટમમાં પણ પીપળાનું વૃક્ષ અત્યંત ઉપયોગી છે જે રાઉન્ડ ધ કલોક પ્રચુર માત્રામાં ઓક્સીજન છોડે છે. આમ પ્રકૃતિએ સૌથી કનિષ્ઠ પક્ષી દ્વારા જ સૌથી શ્રેષ્ઠ અને પ્રકૃતિની સીસ્ટમને સૌથી વધુ ઉપયોગી વૃક્ષ ઉગે તેવી ગોઠવણ કરેલી છે.
https://khabarchhe.com/news-views/science-tech-auto/how-the-crow-helps-growing-pipal-tree.html

25 September 2018

મોર

ભારતનું રાષ્ટ્રીય પક્ષી: મોર

મોર એક જાણીતું અને માનવવસ્તીની નજીક રહેતું પક્ષી છે, જે ખાસ કરીને નર મોર ની રંગીન પીંછા વાળી પૂંછડી માટે જાણીતું છે. વર્ષા ઋતુમાં જ્યારે વાદળો ગડગડાટ કરતાં હોય અને વરસાદ પડવાની તૈયારી હોય ત્યારે નર મોર પીંછા ફેલાવે છે અને નૃત્ય કરતો હોય તેમ ધીરે ધીરે ગોળ ફરતા જઇ પોતાનાં ફેલાવેલાં પીછાંને ઝડપથી ધ્રુજાવે છે, જેને "કળા કરી" કહેવાય છે. આનો હેતુ ઢેલ (માદા મોર) ને આકર્ષવાનો છે.

શારિરીક બાંધો:
મોરની શારિરીક દેહરચના અત્યંત આકર્ષક હોય છે. મોરના પીછા અને તેનો રંગ આ આકર્ષક દેખાવનું મૂળ છે. મોર માથાથી પેટ સુધી ચમકદાર જાંબલી રંગનો હોય છે જ્યારે ઢેલ ઘાટા કથ્થાઈ રંગની હોય છે. મોરની પુંછડી આશરે ૧ થી ૧.૫ મીટર લાંબી હોય છે જે રંગબેરંગી પીંછાથી લદાયેલ હોય છે. મોરનું વજન ૪ થી ૬ કિલોની આસપાસ હોય છે જ્યારે ઢેલનું વજન ૩ થી ૪ કિલોની આસપાસ હોય છે.મોર તેમજ ઢેલનાં માથે પીંછાની કલગી હોય છે. મોર તેના ભરાવદાર શરીર રચના ને કારણે હંમેશા પોતાના પગ પર આધાર રાખે છે. ભયગ્રસ્ત પરિસ્થિતિ મા પણ તે ઝડપથી દોડ લગાવે છે. મોર ઉડવાનુ ઓછું પસંદ કરે છે કરે છે કારણ કે તેનું શરીર ભરાવદાર હોય છે તેથી તેને ઉડવામાં મુશ્કેલી પડે છે.માટે તે ખૂબ જ ઓછુ ઉડી શકે છે.

ખોરાક :
મોર તેના ખોરાકની શોધ વહેલી સવાર તેમજ સંધ્યાકાળ (સુર્યાસ્ત થતાં પહેલાં)સુધી કરે છે. બપોર નો સમય મહ્દઅંશે કોઇ ઘટાદાર વૃક્ષની ડાળી પર આરામ ફરમાવતા પસાર કરે છે. ખોરાક માટે મોર ચાર પાંચની સંખ્યાના નાના ટોળામાં વન વગડા તેમજ ખેતર માં ફરીને અનાજ નાં દાણા, જીવડાં અને નાના સરિસૃપ આરોગે છે.

ધાર્મિક મહત્વ :
મોર હિંદુ ધર્મમાં એક અનેરું સ્થાન ધરાવે છે. ભગવાન શ્રી કૃષ્ણ તેમના મુગટમાં બાળપણથી જ કાયમ મોરનું પીંછું ધરતા હતા તેમજ સરસ્વતી માતા પણ મોરપીંછ ધારણ કરે છે. ભગવાન શિવના પુત્ર કાર્તિકેયનું વાહન મોર હોવાનું પણ હિંદુ ધાર્મિક ગ્રંથોમાં લખેલું છે. એક રીતે જોઇએ તો હિંદુ ધર્મનાં કોઇપણ દેવી દેવતાનાં ચિત્રમાં મોર સુશોભન માટે એક અલાયદું સ્થાન ધરાવે છે. વર્તમાન સમયમાં પણ અનેક મંદિરોમાં ભગવાનને આરતી સમયે મોરનાં પીંછાંથી બનેલ પંખાથી પવન વીઝવામાં આવે છે.
માહિતી : Wikipedia

24 September 2018

आदत से मजबूर



मैंने सुना है कि महाराष्ट्र के एक संत एकनाथ यात्रा पर जाते थे तो गांव के बहुत लोग उनके साथ जा रहे थे। उन दिनों यही रिवाज था कि अगर तीर्थयात्रा पर भी जाना हो तो किसी संत के साथ जाना। क्योंकि संत के साथ जाओगे तो ही तीर्थ पहुंचोगे। अकेले चले जाओगे, तीर्थ आ भी जाएगा मगर तुम पहुंचोगे नहीं, क्योंकि तुम्हें तीर्थ का कुछ पता नहीं है। जो पहुंच गया हो तीर्थ, उसके साथ तीर्थयात्रा पर लोग जाते थे। तो गांव के बहुत लोग एकनाथ के साथ हो लिये। गांव का एक चोर भी—जाहिर चोर; छोटे गांव जब थे दुनिया में तो सभी चीजें जाहिर थीं कि कौन चोर है, कौन जुआरी है, कौन शराबी है; छोटे गांव में बचे क्या, छिपे क्या?
वह चोर भी एकनाथ के साथ जाना चाहता था, उसने कहा कि मैं भी चलूंगा। एकनाथ ने कहा, कि भाई, तेरी आदत पुरानी है—वह दूसरे नंबर का अपराधी था—तू चूकेगा नहीं अपनी आदत से। हम तुझे भलीभांति जानते हैं। क्योंकि मौका आया होगा कि वह एकनाथ तक की चीजें चुरा ले गया होगा। कि तू भाई न ही जा तो अच्छा। क्योंकि कई लोग जत्थे में होंगे, और तू चीजें—मीजें चुराका और परेशानी खड़ी होगी। तू बाज न आएगा, लंबी यात्रा है, फिर तुझे बीच से भेज भी न सकेंगे, लोग शिकायत भी करेंगे।
पर उस चोर ने कहा, मैं कसम खाता हूं अब आपके सामने क्या, कसम खाता हूं कि चोरी नहीं करूंगा। जिस दिन से यात्रा शुरू होगी उस दिन से लेकर जिस दिन यात्रा अंत होगी तब तक चोरी नहीं करूंगा, आगे की मैं नहीं कहता। मगर यात्रा में नहीं करूंगा, यह तो आप वचन मेरा स्वीकार करो। एकनाथ ने कहा ठीक!
दिन अच्छे थे वे। अब तो तुम साहूकार के वचन का भी भरोसा नहीं कर सकते, तब चोर के वचन का भी भरोसा किया जा सकता था। तब डाकुओं में भी एक भलापन होता था, अब भले आदमियों में भी डाकू हैं।
चोर ने कहा तो एकनाथ ने मान लिया कि ठीक है। और चोर ने अपने वचन का पालन किया। महीनों लगे यात्रा में, लेकिन चोरी न की। लेकिन एक उपद्रव शुरू हुआ। उपद्रव यह हुआ कि एक आदमी के बिस्तर की चीजें दूसरे आदमी के बिस्तर में मिलें। किसी के संदूक की चीजें किसी और के संदूक में मिलें। मिल तो जाएं लेकिन चीजें बड़बड़ होने लगीं।
एकनाथ को शक हुआ। उन्होंने पूछा उसको कि भई तू कुछ कर तो नहीं रहा है? उसने कहा कि देखिये, आपसे मैंने कहा कि चोरी नहीं करूंगा, सो मैं नहीं कर रहा हूं। लेकिन मेरा अभ्यास तो मुझे जारी रखना पड़ेगा। रात मुझे नींद ही नहीं आती। तो मैं चुरा तो नहीं रहा हूं, एक चीज मैंने नहीं चुरायी है, अगर इसके खीसे से निकालकर उसके खीसे में कर देता हूं तो मुझसे राहत मिलती है। फिर मैं निश्चित हूं जब दो—तीन बजे रात को कुछ काम कर लिया, तो फिर सो जाता हूं। अब इसमें आप बाधा न दो। चीजें मिल ही जाएंगी उनको, सभी यहीं हैं, कोई कहीं जाता नहीं है, मगर आप जानते ही हो लौटकर फिर मुझे काम तो अपना चोरी का करना ही पड़ेगा, तो अभ्यास। ऐसे अभ्यास चूक जाए! उस चोर ने कहा देखो, आप भी रोज भगवान की प्रार्थना करते कि नहीं, ऐसे मेरा यह काम है।
तो एक अभ्यास, आदत से काम हो रहे हैं। वे ज्यादा घातक हैं पहले से। उनसे भी ज्यादा घातक तीसरे हैं। जो अभ्यास से भी ज्यादा गहरे हैं, आदत से भी ज्यादा गहरे हैं। क्योंकि किसी को सिगरेट पीनी हो, शराब पीनी हो तो सीखनी पड़ती है, लेकिन लोभ अनसीखा है; क्रोध अनसीखा है, किसी को जुआ खेलना हो तो सीखना पड़ता है। सीखोगे तो ही सीख पाओगे। जुआरियों का सत्संग मिलेगा तो सीख पाओगे। चोरों के साथ रहतौ तो चोरी सीख लोगे लेकिन लोभ, क्रोध, काम, मोह, उनको सीखना नहीं पड़ता। उनको हम जन्म के साथ लेकर आए हैं। वह हमारे जन्मों—जन्मों की मूर्च्छा हैं।
#ओशो : अथातो भक्‍ति जिज्ञासा

साईबाबा के दर्शन

परमात्मा की झलक :

साईं बाबा के पास एक हिंदू संन्यासी बहुत दिन तक था। हिंदू संन्यासी, और साईं तो रहते थे मस्जिद में। साईं बाबा का कुछ पक्का नहीं कि वे हिंदू थे कि मुसलमान। ऐसे आदमियों का कभी कुछ पक्का नहीं। लोग पूछते तो वे हंसते थे। अब हंसने से तो कुछ पता चलता नहीं! एक ही बात पता चलती है कि पूछनेवाला नासमझ है। हिंदू संन्यासी था, लेकिन वह तो मस्जिद में कैसे रुके साईं के पास! तो वह गांव के बाहर एक मंदिर में रुकता था।

लगाव उसका था, प्रेम उसका था, रोज खाना बनाकर लाता था। साईं को खाना देता, फिर जाकर खाना खाता। साईं बाबा ने उससे कहा कि तू इतनी दूर क्यों आता है? हम तो कई बार वहीं से निकलते हैं, तब तू वहीं खिला दिया कर! उसने कहा, आप वहां से निकलते हैं? कभी देखा नहीं! तो साईं ने कहा कि जरा गौर से देखना; हम कई बार तेरे मंदिर के पास से निकलते हैं, वहीं खिला देना। कल हम आ जाएंगे, तू मत आना।

कल उस हिंदू संन्यासी ने बनाकर खाना रखा, अब देखता है, देखता है, देखता है। वे आते नहीं, आते नहीं, आते नहीं! वह घबड़ा गया, दो बज गए, तो उसने कहा कि बड़ी मुश्किल हो गई, वे भी भूखे होंगे और मैं भी भूखा बैठा हूं। फिर वह थाली लेकर भागा। साईं के पास पहुंचा, साईं से उसने कहा कि हम राह देखते रहे, आज आप आए नहीं। उन्होंने कहा कि आज भी आया था, रोज आता हूं लेकिन तूने तो दुत्कार दिया। उसने कहा, कहां दुत्कारा? सिर्फ एक कुत्ता आया था। तो साईं ने कहा कि वही मैं था। तब तो वह हिंदू संन्यासी बहुत रोया, बहुत दुखी हुआ। उसने कहा कि आप आए और मैं पहचान न पाया! कल जरूर पहचान जाऊंगा।

अगर कुत्ते की ही शक्ल में कल भी आते तो पहचान जाता। कल भी वे आए, लेकिन एक कोढ़ी था रास्ते पर मिला। उस संन्यासी ने कहा कि जरा दूर से! दूर से! मैं भोजन लिए हुए हूं साईं का, जरा दूर से निकलो! वह कोढ़ी हंसा भी। फिर दो बज गए, फिर भागा हुआ मस्जिद आया, उसने कहा कि आप आज आए नहीं, आज मैंने बहुत रास्ता देखा। तो साईं ने कहा कि मैं तो फिर भी आया था। लेकिन तेरे चित्त में इतनी तरंगें हैं कि रोज मैं वही तो दिखाई नहीं पड़ सकता! तू ही कैप जाता है। आज वह एक कोढ़ी आया था, तो तूने कहा, दूर हट। तो मैंने कहा, हद हो गई! मैं आता हूं तो तू भगा देता है और यहां आकर कहता है कि आप आए नहीं। तो वह संन्यासी रोने लगा, उसने कहा कि मैं आपको पहचान ही नहीं पाया। तो साईं ने उससे कहा था कि तू अभी मुझे ही नहीं पहचान पाया, इसलिए दूसरी शक्लों में मुझे कैसे पहचान पाएगा?

एक बार उसकी शक्ल हमारे खयाल में आ जाए, फिर तो सभी शक्लों में वह मिल जाता है। लेकिन एक दफा पहचान ही न हो पाए, तो वह कहीं भी हमें नहीं मिलता है। मिलता है रोज, लेकिन हम रिकग्नाइज नहीं कर पाते, हम पहचान नहीं पाते कि यही है।

एक बार हम सत्य की झलक पा लें, तो फिर असत्य है ही नहीं। एक बार हम परमात्मा को झांक लें, तो परमात्मा के अतिरिक्त फिर कुछ है ही नहीं।
ओशो - जिन खोजा तिन पाइयां

23 September 2018

Black-winged Kite

કપાસી (અંગ્રેજી: Black-winged Kite)

એ નાનું દિવસે શિકાર કરતું પક્ષી છે જે ઘાસીયાં મેદાનો પર મંડરાવા માટે જાણીતું છે.

આ લાંબી પાંખોવાળું શિકારી પક્ષી ખભા પર, પાંખના છેડે અને આંખો આસપાસ કાળા ડાઘ સાથેના રાખોડી કે સફેદ રંગનું હોય છે. આ પક્ષી મુખ્યત્વે તો મેદાનોમાં જોવા મળે છે.

વીજળીના તાર પર ખાસ બેઠેલું જોવા મળે અને મોકો મળતાં શિકાર પર તૂટી પડે.
તેની શિકાર કરવાની પદ્ધતિ અન્ય શિકારી પક્ષીઓ કરતાં થોડી વિવિધાતાભરી અને ધ્યાનાકર્ષક છે. આકાશમાં એક જગ્યાએ સ્થિર ઊડ્યા કરે અને શિકાર નજરે ચડતાં ત્વરિત ગતિએ ઝપટ મારી પકડી લે.

कल करै सो आज कर


कब मन की पुरानी तरकीब है। जब मन को कोई बात टालनी होती है, तो वह कहता है, कल कर लेंगे।
मार्क ट्वेन ने एक संस्मरण लिखा है कि वह एक चर्च में प्रवचन सुनने गया। जब वह प्रवचन सुन रहा था तो बड़ा प्रभावित हुआ। कोई पांच —सात—दस मिनिट ही बीते थे, वह जो चर्च में बोल रहा था धर्मगुरु बड़ा प्रभावशाली था, मार्क ट्वेन ने सोचा कि आज सौ डालर दान कर दूंगा। फिर दस मिनिट और बीते, अब तो उसे सुनने की याद ही नहीं रही, अब वह सौ डालर की सोचने लगा। फिर उसने सोचा कि सौ डालर जरा ज्यादा होते हैं, पचास से ही काम चल जाएगा। फिर और दस मिनिट बीते, फिर वह सोचने लगा, पचास डालर भी, पचास डालर के लायक बात नहीं जंचती, पच्चीस से चल जाएगा। ऐसे सरकता रहा, सरकता रहा। फिर तो एक डालर पर आ गया। जब आखिरी प्रवचन होने के करीब था तो एक डालर पर आ गया।
फिर उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि तब मुझे खयाल आया और तब मैं एकदम निकल भागा चर्च से। क्योंकि मुझे डर लगा कि जब चंदा मांगने वाला व्यक्ति थाली लेकर घूमेगा, तो अब मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मैं थाली में से कुछ लेकर अपनो जेब में न रख लूं। सौ देने चला था! इस डर से जल्दी से चर्च के बाहर निकल आया कि कहीं थाली में से कुछ उठाकर अपनी जेब में न रख लूं।
तुम सोचते हो, कल संन्यास लोगे! कल तक तुम्हारी संसार की आदतें और मजबूत हो जाएंगी। कल तक तुम और अपने बंधनों को पानी से सींच दोगे। चौबीस घंटे और बीत जाएंगे! चौबीस घंटे तुम और पागल रह चुके होओगे। चौबीस घंटे तुमने और जाल फैला लिए होंगे, और वासनाएं, और आकांक्षाएं और उपद्रव बना लिए होंगे। अभी नहीं छूट सकते हो तो कल कैसे छूटोगे? परसों तो और मुश्किल हो जाएगा। बात रोज—रोज मुश्किल होती जाएगी। ऐसे ही बहुत देर हो चुकी है। इसलिए मैं तुमसे सिर्फ इतना ही कहूंगा, जो भी करना हो, उसे क्षण में कर लेना।
एस धम्मो सनंतनो-(ओशो)

કમળ




પવિત્રતાનું પ્રતિક કમળ
કમળ કાદવમાં ખીલે છે, છતાં એ કાદવ તેને સ્પર્શી શકતો નથી. કમળની સુંદરતા અને તેની સુગંધ દરેકનું મન મોહનારી છે. કમળની આઠ પાંખડીઓ માણસના જુદા-જુદા ગુણની પ્રતીક છે. કમળ આપણને જીવન જીવવાની રીત શીખવે છે.
આમ તો કમળનું મૂળ વતન વિયેતનામથી અફઘાનિસ્તાન સુધીનું ગણાય છે. આશરે ૧૭૮૭માં સૌ પ્રથમ વાર કમળ પશ્ચિમ યુરોપમાં લઇ જવામાં આવ્યું. દક્ષિણ એશિયા અને ઓસ્ટ્રેલિયામાં તેનું વાવેતર કરવામાં આવ્યું. કમળ ભારત તથા વિયેતનામનું રાષ્ટ્રીય ફૂલ છે.
 કમળ પાણીવાળી જગ્યાએ જ ઊગે છે. કહેવાય છે કે પ્રાચીન ઇજિપ્તમાં તો દીવાલ અને સ્થંભ ઉપર પણ કમળનાં ચિત્રો અંકિત થયેલાં છે. તેને ‘પવિત્ર કમળ’ કે ‘વાદળી કમળ’ તરીકે ઓળખવામાં આવે છે. ચીની લોકો પણ કમળને પવિત્રતા અને સૌંદર્યનું પ્રતીક માને છે. તેનો ઉપયોગ ચીનની કવિતામાં પણ થાય છે. કેવી રીતે ખીલે છે? કમળ વહેતા પાણીમાં ક્યારેય ખીલતા નથી. પરંતુ તળાવડીમાં સ્થિર પાણી ને કાદવમાં ઊગે છે. તમને ખબર છે કમળને સાંઠા હોય. આ સાંઠાની દાંડી અંદરથી એકદમ પોલી ભૂંગળી જેવી હોય છે. આ પાતળી દાંડીનો અંદરનો છેડો છેક તળિયાના કાદવમાં હોય. દાંડીના ઉપરના ભાગે બે-ત્રણ પાંદડાં હોય. જાણીને આશ્ચર્ય થાય કે કમળના પાંદડાં પાણીમાં જ રહેવા છતાં કાદવમાં કે પાણીમાં ભીનાં થતા નથી. ચોમાસામાં કમળની દાંડીના ઉપરના છેડે કળી ફૂટે અને તેમાંથી જ કમળનું ફૂલ ખીલી ઊઠે છે. કમળના ફૂલ સફેદ, વાદળી, ગુલાબી રંગના હોય છે. તમે ધ્યાનથી જોશો તો ખબર પડશે કે એના ફૂલમાં આડી, ત્રાંસી અને ઊભી એમ પાંખડીના ત્રણ થર હોય છે. કમળનું ફૂલ ખીલે પછી બે-ત્રણ દિવસ સુધી ખીલેલું રહે છે. રાત્રે તેની પાંખડીઓ બીડાઈ જાય છે અને વળી પાછું ખીલી ઊઠે છે.
અનેક રીતે ઉપયોગી કમળના ફૂલ, બીજ અને કુમળા પાંદડાં પણ ખાવાલાયક છે. એશિયામાં કમળની પાંખડીનો ઉપયોગ સજાવટમાં અને તેનાં પાંદડાનો ઉપયોગ ખાદ્યપદાર્થમાં થાય છે. કોરિયામાં તો કમળના પાંદડાં અને પાંખડીનો ઉપયોગ ચા બનાવવા માટે થાય છે. ચાઈનીઝમાં કમળની સુગંધીદાર ચાને ‘લિઆન્હુઆ ચા’ કહે છે. વિયેતનામમાં પણ ચામાં સુગંધી લાવવા માટે તેનો ઉપયોગ કરવામાં આવે છે.
સાંસ્કૃતિક મહત્વ કમળનું સાંસ્કૃતિક મહત્વ પણ જાણવા જેવું છે. ખીલેલું કમળ પદ્મને પુરાણ શાસ્ત્રોના આરંભ સાથે અને વિષ્ણુ, બ્રહ્ના, લક્ષ્મી અને સરસ્વતીદેવી સાથે જોડવામાં આવે છે. લક્ષ્મીજીનું સ્વરૂપ કમળ વગર ક્યારેય જોવા નહીં મળે. તેથી જ લક્ષ્મીજીને કમળના અનેક નામોથી ઓળખવામાં આવે છે. જેમકે, ‘પદ્મા’ (કમલા), ‘પદ્મપ્રિયા’ (કમળ જેને પ્રિય છે તે), ‘પદ્મમુખી’ (કમળ જેવા મુખવાળી), ‘પદ્મસ્થા’ (કમળ ધારણ કરનારી) વગેરે જેવા અનેક નામમાં સૌંદર્યનું પ્રતીક કમળ છે. પ્રાચીનકાળથી કમળ હિન્દુ પરંપરાનું ભવ્ય ચહિ્ન રહ્યું છે. કમળની પાંખડીઓનું ખૂલવું આત્માના દ્વાર ઊઘડવા સાથે સરખાવાય છે. તેનું કાદવમાં ખીલવું એક અનોખું આધ્યાત્મિક ઉદાહરણ પૂરું પાડે છે. બ્રહ્ના અને લક્ષ્મી જેવા સમૃદ્ધિના દેવનો સંબંધ કમળ સાથે છે. કમળની આઠ પાંખડીઓ માનવીના જુદા-જુદા ગુણ દર્શાવે છે. પવિત્રતા, શાંતિ, દયા, મંગળ, નિ:સ્પૃહતા, સરળતા, ઇર્ષ્યાનો અભાવ અને ઉદારતા. જો આપણે આ દરેક ગુણ અપનાવી લઈએ તો આપણે પણ ભગવાનને કમળના ફૂલની જેમ પ્રિય બની જઈએ.
https://www.divyabhaskar.co.in/news/MAG-bal-bhaskar-lotus-symbolizes-purity-3104157.html

Night Heron

Black-crowned Night Heron : અવાક, રાત બગલો
 

સ્વભાવે નિશાચર. કદમાં થોડો નાનો. પણ શરીરે ભરાવદાર. ઉપરના શરીરનો રંગ લીલી ઝાંયવાળો કાળો. કપાળ સફેદ. આંખ ઉપર સફેદ રેખા. માથું અને ડોક કાળા. ચોમાસામાં માથા ઉપર બે સફેદ નરમ લાંબા પીંછાં આવે. પેટાળ સફેદ. પડખા રાખોડી. નર-માદા સરખા. બચ્ચાં બદામી અને તેમાં પીળીચટ રેખાઓ. દિવસ આખો ઘટાદાર વૃક્ષોમાં ડોક સંકોચીને બેઠાં બેઠાં શાંતિથી આરામ કરે. સંધ્યાનું અંધારું થતાં અવાક ...અવાક એમ બોલતાં જળાશયો તરફ ઉડી નીકળે. રાતભર ત્યાં પેટપૂજા કરે અને પ્રભાત થતાં પાછાં પોતાના સ્થળે પહોંચી જાય.
- "પાણીનાં સંગાથી" માંથી સાભાર    

21 September 2018

यह भी बीत जायेगा



एक बडी प्रसिद्ध सुफी कहानी है। एक सम्राट ने अपने सारे बुद्धिमानों को बुलाया और उनसे कहा मैं कुछ ऐसे सुत्र चाहता हूं, जो छोटा हो, बडे शास्त्र नहीं चाहिए, मुझे फुर्सत भी नहीं बडे शास्त्र पढने की। वह ऐसा सुत्र हो जो एक वचन में पूरा हो जाये और जो हर घडी में काम आये। दूख हो या सुख, जीत हो या हार, जीवन हो या मृत्यु सब में काम आये, तो तुम लोग ऐसा सुत्र खोज लाओ।
उन बुद्धिमानों ने बडी मेहनत की, बडा विवाद किया कुछ निष्कर्ष नहीं हो सका। वे आपस में बात कर रहे थे, एक ने कहा- हम बडी मुश्किल में पडे हैं बड़ा विवाद है, संघर्ष है , कोई निष्कर्ष नहीं हो पाय, हमने सुना हैं एक सूफी फकीर गांव के बाहर ठहरा है वह प्रज्ञा को उपलब्ध संबोधी को उपलब्ध व्यक्ति है, क्यों न हम उसी के पास चलें ?
वे लोग उस सुफी फकीर के पास पहूंचे उसने एक अंगुठी पहन रखी थी अपनी अंगुली में वह निकालकर सम्राट को दे दी और कहा इसे पहन लो। इस पत्थर के नीचे एक छोटा सा कागज रखा है, उसमें सुत्र लिखा है, वह मेरे गुरू ने मुझे दिया था, मुझे तो जरूरत भी न पडी इसलिए मैंने अभी तक खोलकर देखा भी नहीं
उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब कुछ उपाय न रह जायें, सब तरफ से निरूपाय हो जाओं, तब इसे खोलकर पढना, ऐसी कोई घडी न आयी उनकी बडी कृपा है इसलिए मैंने इसे खोलकर पढा नहीं, लेकिन इसमें जरूर कुछ राज होगा आप रख लो। लेकिन शर्त याद रखना इसका वचन दे दो कि जब कोई उपाय न रह जायेगा सब तरफ से निरूपाय असहाय हो जाओंगे तभी अंतिम घडी में इसे खोलना।
क्योंकि यह सुत्र बडा बहुमूल्य है अगर इसे साधारणतः खोला गया तो अर्थहीन होगा। सम्राट ने अंगुठी पहन ली, वर्षो बीत गये कई बार जिज्ञासा भी हुई फिर सोचा कि कही खराब न हो जाए, फिर काफी वर्षो बाद एक युद्ध हुआ जिसमें सम्राट हार गया, और दुश्मन जीत गया। उसके राज्य को हडप लिया |
वह सम्राट एक घोडे पर सवार होकर भागा अपनी जान बचाने के लिए राज्य तो गया संघी साथी, दोस्त, परिवार सब छुट गये, दो-चार सैनिक और रक्षक उसके साथ थे वे भी धीरे-धीरे हट गये क्योंकि अब कुछ बचा ही नहीं था तो रक्षा करने का भी कोई सवाल न था।
दुष्मन उस सम्राट का पीछा कर रहा था, तो सम्राट एक पहाडी घाटी से होकर भागा जा रहा था। उसके पीछे घोडों की आवाजें आ रही थी टापे सुनाई दे रही थी। प्राण संकट में थे, अचानक उसने पाया कि रास्ता समाप्त हो गया, आगे तो भयंकर गडा है वह लौट भी नही सकता था, एक पल के लिए सम्राट स्तब्ध खडा रह गया कि क्या करें ?
फिर अचानक याद आयी, खोली अंगुठी पत्थर हटाया निकाला कागज उसमें एक छोटा सा वचन लिखा था यह भी बीत जायेगा। सुत्र पढते ही उस सम्राट के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसके चेहरे पर एक बात का खयाल आया सब तो बीत गया, में सम्राट न रहा, मेरा साम्राज्य गया, सुख बीत गया, जब सुख बीत जाता है तो दुख भी स्थिर नहीं हो सकता।
शायद सुत्र ठीक कहता हैं अब करने को कुछ भी नहीं हैं लेकिन सुत्र ने उसके भीतर कोई सोया तार छेंड दिया। कोई साज छेड दिया। यह भी बीत जायेगा ऐसा बोध होते ही जैसे सपना टुट गया। अब वह व्यग्र नहीं, बैचेन नहीं, घबराया हुआ नहीं था। वह बैठ गया।
संयोग की बात थी, थोडी देर तक तो घोडे की टांप सुनायी देती रहीं फिर टांप बंद हो गयी, शायद सैनिक किसी दूसरे रास्ते पर मूड गये। घना जंगल और बिहड पहाड उन्हें पता नहीं चला कि सम्राट किस तरफ गया है। धीरे-धीरे घोडो की टांप दूर हो गयी, अंगुठी उसने वापस पहन ली।
कुछ दिनों बार दोबारा उसने अपने मित्रों को वापस इकठ्ठा कर लिया, फिर उसने वापस अपने दुष्मन पर हमला किया, पुनः जीत हासिल की फिर अपने सिंहासन पर बैठ गया। जब सम्राट अपने सिंहासन पर बैठा तो बडा आनंदित हो रहा था।
तभी उसे फिर पुनः उस अंगुठी की याद आयी उसने अंगुठी खोली कागज को पढा फिर मुस्कुराया दोबारा सारा आनन्द विजयी का उल्लास, विजयी का दंभ सब विदा हो गया। उसके वजीरों ने पूछा- आप बडे प्रसन्न् थे अब एक दम शांत हो गये क्या हुआ ?
सम्राट ने कहा- जब सभी बीत जायेगा तो इस संसार में न तो दूखी होने को कुछ हैं और न ही सुखी होने को कुछ है। तो जो चीज तुम्हें लगती हैं कि बीत जायेगी उसे याद रखना, अगर यह सुत्र पकड में आ जाये, तो और क्या चाहिए ? तुम्हारी पकड ढीली होने लगेगी। तुम धीरे-धीरे अपने को उन सब चीजों से दूर पाने लगोेगे जो चीजें बीत जायेगी क्या अकडना, कैसा गर्व, किस बात के लिए इठलाना, सब बीत जायेगा। यह जवानी बीत जायेगी |
याद बन-बन के कहानी लौटी, सांस हो-हो के विरानी लौटी
लौटे सब गम जो दिये दुनिया ने, मगर जाकर जवानी लौटी
यह सब बीत जायेगा। यह जवानी, यह दो दिन की इठलाहट, यह दो दिन के लिए तितलियों जैसे पंख यह सब बीत जायेगे। यह दो दिन की चहल-पहल फिर गहरा सन्नाटा, फिर मरघट की शान्ति
- ओशो

Little Green bee-eater


પતરંગો – Little Green bee-eater


નામ પ્રમાણે જ ગુણ, પાંદડા જેવો જ રંગ, ચકલી ની સાઈઝ નું આ પક્ષી છે પતરંગો. ચળકતો લીલો રંગ અને ગળું સહેજ ફિરોજી રંગનું, માથું સહેજ બ્રાઉન, અને અણીદાર પૂંછડી. આમતેમ ઉડ્યા જ કરતુ હોય, એક જગ્યાએ બેસે, પછી ઉડીને હવામાંથી કોઈ જીવડું પકડ્યું કે નાં પકડ્યું પાછું એ જ જગ્યા એ આવીને બેસે. વળી પાછું ઉડે અને પાછું બેસે. તેને આમ હવામાંજ ખોરાક પકડવા ની ક્રિયા કરતા જોતા રહેવાનુંજ મન થાય. ઘણું વ્યાપક પક્ષી, શહેરી વિસ્તારમાંથી થોડાજ બહાર નીકળો કે વાડમાં, ખેતરોમાં જોવા મળીજ જાય. ટર્રર્ર ટર્રર્ર એવો અવાજ કરે. નર-માદા દેખાવે સરખા લાગે.
મોટેભાગે જીવડાને ઉડતા જ પકડે. નાની ઉડતી જીવાતો તેનો મુખ્ય ખોરાક. શિયાળામાં ઘણી વખત સવારે વહેલા ઘણા બધા ૫-૬ કે એથી વધારે ૨૦-૨૫ પતરંગા ને વાયર ઉપર કે ઝાડની ડાળી માં ઊંઘતા નિહાળેલા છે. આંખો બંધ જ હોય બધાની અને એકદમ ચપોચપ અડીને જ બેઠા હોય. જ્યારે એ સમયે બીજા બધા પક્ષીઓ ની સવાર પડી ચુકી હોય અને તેમની મોર્નિંગ એક્ટીવીટી માં કાર્યરત થઇ ગયા હોય. પક્ષીઓ માં પતરંગા કદાચ સૂર્યવંશી હશે!
આખા ગુજરાત માં જોવા મળે. આમતો સ્થાનિક પક્ષી છે અને સમગ્ર વર્ષ દરમ્યાન જોવા મળે પણ ઘણા પક્ષીવિદો નાં મતે તે લોકલ માઈગ્રેશન કરે છે.
ફેબ્રુઆરી થી મે તેમની બ્રીડીંગ સીઝન ગણાય. પતરંગા કોલોની માં માળા બનાવે એટલે સમૂહ માં ઘણા બધા પતરંગા એક જગ્યા પસંદ કરી માળા બનાવે. કોઈ ભેખડ કે પર્વત ની ઉભી દીવાલ માં લગભગ દોઢ થી બે ઈંચ વ્યાસ નો ટનલ જેવો એક થી મંડી ૬ ફૂટ નો ખાડો ખોદી માળા બનાવે. એક વાર માં ચાર થી સાત ઈંડા મુકે. નર-માદા બંને સાથે મળી માળો ખોદે અને બચ્ચાનું પોષણ કરે.
સાભાર : જગદીશ પંડ્યા